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Sep 11, 2013

हम राजपूत इसी लायक तो नहीं ?

बंधुओं पिछले दिनों जोधपुर यूनिवर्सिटी में छात्र संघ चुनाव संपन्न हुए और हम वहां बहुसंख्यक होने के बावजूद हारे, इसमें जीतने वाले की कोई प्रतिभा का कमाल या उसकी रणनीति नहीं थी बल्कि हमारी बेवकूफी व समाज के स्वाभिमान को ताक पर रखकर अपनी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा जिम्मेदारी थी| हमें दोनों राष्ट्रीय दलों से समर्थित छात्र संगठनों से टिकट मिलने पर जीतने की संभावना वाले उम्मीदवार के पक्ष में वोट कर उसकी जीत सुनिश्चित करनी चाहिये थी पर यह बात हमारी समझ में नहीं आई और हम लड़ते रहे|

नतीजा आपके सामने रहा, हमारे दोनों लोग चुनाव हारे और नगण्य संख्या वाले समुदाय का उम्मीदवार चुनाव जीता, यही नहीं इस जीत से उत्साहित उसके समर्थकों ने आप पर हमला करने की धृष्टता भी की, और उनके हमले में जब हमारे लोगों के पिछवाड़े पर चाकुओं के वार हुए तब आपको अक्ल आई और आपने आपसी लड़ाई भूल एकता कर विरोधियों का मुकाबला भी किया और उन्हें सबक भी सिखाया| पर आप जब चेते तब तक आप सब कुछ खो चुके थे| और आपको पता है कि आपकी पीठ पर वार करने का षड्यंत्र रचने वाला वही भस्मासुर था जिसे आपके दो प्रिय नेताओं ने जो पूर्व मंत्री है, पैदा किया था|

पिछले चुनावों में पैदा किये इस भस्मासुर के कारनामों से कोई सीख नहीं लेते हुए आपके वे दोनों आदरणीय फिर एक भस्मासुर को जीवित कर आपके सामने खड़ा करने जा रहे है जबकि वह राक्षस वर्ष १९७१ में ही आपके एक स्वजातिय का बंधू के खून से अपने हाथ रंग चूका है|

सोशियल साइट्स पर मैं हर रोज बना लोगों की हरकतें देख भविष्यवाणी कर सकता हूँ कि - आपकी यह फितरत है कि आप एक जगह मार खाने के बाद भी संभलेंगे नहीं, और शायद आप संभालना भी नहीं चाहते|

अब सोशियल साईट फेसबुक पर कल देखे एक उदाहरण का जिक्र करता हूँ, जहाँ फिर हम जोधपुर यूनिवर्सिटी वाला खेल खेलने को लालायित है-
“कल एक बना ने फेसबुक पर नरपत सिंह जी राजवी के विद्याधरनगर से प्रचार अभियान छड़ने की फोटो लगाई, उस फोटो पर अन्य समुदाय से कोई विरोध करने नहीं आया, यदि कोई आया तो समर्थन करने ही आया भले ही वो वोट दे या न दे, पर समर्थन देकर तो गया ही|

पर उसी फोटो पर बना लोगों को राजवी साहब की आलोचना करते हुए आपस में बहस करते देखा, राजवी साहब के पुत्र अभिमन्यु बना ने वहां असंतुष्ट बनाओं की नाराजगी दूर करने की भी कोशिश की पर उनकी उपस्थिति देख बना लोगों ने संस्कारहीन भाषा तक का प्रयोग कर लिया| देख कर दुःख के साथ अफ़सोस भी हुआ कि जिन्हें कुछ पता नहीं वे महज अपनी हैकड़ी दिखाने को कुछ भी बकवास कर जाते है| ऐसे तत्वों को रतन सिंह भगतपुरा व कुछ अन्य लोगों द्वारा समझाते हुए भी देखा गया पर अपने उम्रदराज लोगों की बात भी इन तत्वों को समझ नहीं आई| जिस तरह बना लोगों को वहां रतनसिंह भगतपुरा ने बताया कि- वे जब भी राजवी साहब के घर गए है, राजवी साहब लोगों से बातचीत करते ही मिले है, भगतपुरा लिखते कि- उन्होंने कई बार तो राजवी साहब को घर के बाहर बैंच पर ही बैठे देखा है, साथ ही उनके घर पर प्रवेश के समय पुलिस होने के बावजूद कोई पूछताछ नहीं करता, ना कोई रोकता है,| अब बताईये भला एक पूर्व उपराष्ट्रपति के घर इतनी आसानी प्रवेश किया जा सकता है ? मेरी नजर में तो कोई सांसद भी अपने घर में प्रवेश को इतना आसान नहीं रहने देता, पर कोई जाये ही नहीं तो राजवी साहब अब हर घर, हर व्यक्ति से मिलने तो आने से रहे, राजवी साहब ही क्यों कोई एम.एल.ए तो क्या पार्षद व वार्डपंच भी एक एक व्यक्ति से मिलने घर नहीं आता|

फिर किसी भी विधायक से हमें अपने छोटे छोटे व्यक्तिगत काम करवाने की उम्मीद नहीं करनी चाहिये, पर आजकल लोग चाहते है कि उनके घर बच्चे के नामकरण पर भी विधायक जी आयें और उनके बाद वे अपने पड़ौसियों पर रॉब झाड सके कि देखो- विधायक जी हमारे खास है| यह प्रवृति आजकल ज्यादा ही घर कर गयी खासकर हमारी नई पीढ़ी में|

मान लिया किसी राजपूत विधायक ने हमारा काम नहीं किया, और उसे हम हरा देंगे तो क्या गारंटी है कि दूसरी जाति वाला हमारे हर काम आयेगा| फिर जैसा कि उस बहस में रतन सिंह भगतपुरा ने लिखा- “स्व.बाबोसा ने समाज हित में जितने कार्य किये है उसके लिए समाज उनका सदियों तक ऋणी रहेगा, ऐसे में हमें उनके परिवार के किसी सदस्य का विरोध किसी हालत में नहीं करना चाहिये|” भगतपुरा जी की बात से मैं एकदम सहमत हूँ बल्कि मैं तो कहूँगा आज स्व.बाबोसा के दामाद जी के आगे किसी राजपूत को चुनाव ही नहीं लड़ना चाहिये| यदि कोई ऐसा करता है तो उसे समाजद्रोही घोषित समाज से निष्कासित कर देना चाहिये| क्योंकि स्व.बाबोसा की अनुपस्थिति में यदि हम उनके परिवार को हारने का कुकृत्य करते है(वो भी उस परिस्थिति में जब भाजपा का एक खास वर्ग इस परिवार को राजनीति से बाहर के करने के षड्यंत्र में लगा है) तो वह स्व.बाबोसा के प्रति गद्दारी होगी, एक ऐसे व्यक्ति के किये कार्यों के प्रति गद्दारी होगी जिन समाज हित के कार्यों को उन्होंने बिना ढिंढोरा पीटे, बिना कोई क्रेडिट लिए चुपचाप कर डाला, आज स्व.भैरोंसिंह जी १९५२ की विधानसभा में जाटीस्तान की मांग की हवा नहीं निकाली होती तो आपका राजस्थान ऐसा नहीं होता, उसमें जातिय आधार पर कब का जाटीस्तान बन चूका होता और आप उस जाटीस्तान में उसी तरह के खौफ में रहते जैसे पाकिस्तान, बांग्लादेश में हिन्दू रहते है| स्व.भैरोंसिंह जी नहीं होते तो आज आपको जितने राजपूत अधिकारी नजर आते है उनकी जगह कोई और नजर आते, स्व.बाबोसा नहीं होते तो आज जिन किलों व हवेलियों की फोटो आप फेसबुक पर चिपका कर गर्व से डायलोग लिखते फिरते है वे कब की ढूंढ़ों में तब्दील हो जाती या जमीन पर छितराई पड़ी अपनी मौत पर बेबसी के आंसू बहा रही होती|

स्व.बाबोसा ने प्रदेश के मुख्यमंत्री बन, देश के उपराष्ट्रपति बन आपके समाज के स्वाभिमान को बढाया ही है, स्व. बाबोसा राष्ट्रपति चुनाव नहीं लड़ते तो एक राजपूत महिला राष्ट्रपति के स्थान पर कोई शिंदे,फिंदे राष्ट्रपति होते| प्रतिभा जी को महामहिम बनाने का श्रेय भी स्व.बाबोसा भैरोंसिंह जी को ही जाता| और हम ! हम उनके ही परिवार की खिलाफत महज यह तर्क देते हुए करते है कि राजवी साहब मिलते नहीं| अरे करम फूटो वो मिले नहीं नहीं मिले उस परिवार ने तुम्हारे लिए बिना बोले, बिना मिले कितना कुछ कर दिया उसका तो ख्याल रखो, उसका ऋण चुकाने को तो तत्पर रहो|

खैर....मेरे इस लेख पर भी मुझे पता है कई बना लोग प्रतिकूल टिप्पणियाँ करेंगे और कहेंगे कि विक्रम सिंह भी तो राजपूत है उन्हें क्यों हराया जाय ? इसका मेरे पास एक ही जबाब है कि स्व.बाबोसा के परिवार के सामने किसी क्षत्रिय को चुनाव लड़ना ही नहीं चाहिये, फिर भी लड़ता है तो आप उसे समर्थन ना दें, और देते है तो फिर महाराणा प्रताप की जगह राजा मानसिंह को अपना आदर्श पुरुष मानने लग जायें|

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