नागवंशी ईसाई युग की शुरुआत के बाद से छोटानागपुर के शासक थे| पहले नागवंशी
शासक फणी मुकुट राय का 64 ई. में जन्म हुआ| उन्हें सुताम्बे के पार्थ
राजा मद्रा मुंडा, ने गोद लिया था| फणी मुकुट राय को एक शरोवर किनारे
एक नवजात शिशु के रूप में पाया गया था| उस वक़्त एक फन्धारी कोबरा (नाग)
उनकी रक्षा कर रहा था कहा जाता है. कि शायद यह ही वो वजेह है की वह और
उनके उत्तराधिकारियों नागवंशी कहा जाता था |फणी मुकुट राय 83AD से 162 ई.
तक शासन किया. अब तक चार नाग्वंशावालियाँ मौजूद है जो इस बात की पुष्टि
करती है की 1 शताब्दी से 1951(ज़मींदारी प्रथा के खात्मे तक )तक करीब दो
हजार साल के लिए भारत में छोटानागपुर पठार पर नागवंशियों का शासन रहा है
(यह छोटानागपुर नागवंश को विश्व में सबसे लम्बे समय तक शासन करने वालों की
सूचि में ले जाने का पर्याप्त सबूत है जिस सूचि में बुल्गारिया के दुलो
कबीले, इम्पीरियल जापान की सभा और कोरिया के होंग बैंग राजवंश में शामिल
हैं)|
अकबर के शासनकाल तक छोटानागपुर मुगलों का आधिपत्य के तहत नहीं आया था और नागवंशी शासकों ने स्वतंत्र शासक के रूप में इस क्षेत्र पर शासन किया गया था. अकबर को सूचित किया गया की एक विद्रोही अफगान सरदार जुनैद कररानी , छोटानागपुर में शरण ले जा है , इसके अलावा, सम्राट भी इस क्षेत्र में पाए जाने के हीरे की जानकारी मिलने से भी आश्चर्य-चकित था की आखिर इस राजवंश में ऐसा क्या है की इतना खजाना और प्राकृतिक सौंदर्य के होने के वजेह से जब भी किसी राजवंश ने इन्हें अपने अधिकार में लेने के लिए आक्रमण किया है उसे हार का मूह देखना पड़ा है | नतीजतन, अकबर ने अपने विश्वस्त शाहबाज खान तुरबानी को कोखरा (छोटानागपुर के नागवंशी राजाओं की तत्कालीन राजधानी ) पर हमला करने के आदेश दिया| उस समय राजा मधु सिंह , 42 वीं नागवंशी राजा के रूप में कोखरा पर कर रहे थे |दोंनो पक्षों से लम्बे समय तक संघर्ष जरी रहा और अंत में नागवंशियों ने जान और माल की भारी नुक्सान के कारन प्रजाहित देखते हुए ,सुलह कर ली और छह हजार रुपए की राशि मुगलों को वार्षिक राजस्व के रूप में देय तय की गई थी |इतिहास का में पहली बार ऐसे साक्ष्य मिले की नागवंशी राजाओं को छोटानागपुर पे राज करते वक़्त किसी के अधीन रहना पड़ा |
जहाँगीर के शासनकाल के आगमन से, नागवंशी राजा दुर्जन साल छोटानागपुर में सत्ता में आए थे| उन्होंने सम्राट अकबर द्वारा तय किराए का भुगतान करने से इनकार कर दिया | जहांगीर ने कोखरा पर हमला करने के लिए इब्राहिम खान (बिहार के राज्यपाल) का आदेश दिया |इस आक्रमण का विवरण तुजुक -इ -जहाँगीरी , जहांगीर के संस्मरण में उल्लेख मिलता हैं | आक्रमण के पीछे एक और कारण भी था. इस क्षेत्र में संख नदी के बिस्तर में पाया जाने वाले ( जिसे अकबर राज्य को अपने अधीन करने के बाद भी नही पा सका था )हीरे का अधिग्रहण की कोशिश था | हीरे की अत्यधिक मात्र में राज में प्राकृतिक उपलब्धता और हीरे की एक विशेषज्ञ होने की वजह से राजा दुर्जन साल को "हीरा राजा "के नाम से जाना जाता था| इस प्रकार छोटानागपुर के राजा को वश में करने और मूल्यवान हीरे प्राप्त करने के लिए, जहांगीर ने छोटानागपुर पर आक्रमण करने का फैसला किया|
बादशाह के आदेश से इब्राहिम खान ने 1615 ई. में कोखरा के खिलाफ मार्च किया, वह अपने गुप्तचरों की मदद से आसानी से नागवंशी प्रदेशों में प्रवेश करता गया | राजा दुर्जन साल को और पुरे राजपरिवार को जंगलों पहाड़ियों में किसी गुफा में राज्य के सामंतो ने सुरक्षित पहुंचा दिया |युद्ध ख़तम होने से पहले किसी ने ये सूचना मुग़ल सैनिकों को दे दी ,इस गद्दार स्वरुप रजा दुर्जन साल को युद्ध ख़तम होने से पहले गिरफ्तार कर लिया गया और नागवंशी सामंतो का विरोध इसके तुरंत बाद कमजोर हो गया | राजा दुर्जन साल के राज्य में जितने भी हीरे थी सब इब्राहिम खान द्वारा कब्जा कर लिया गया | चौबीस हाथियों भी इब्राहिम खान ने बादशाह दरबार के लिए ले ली |इस के बाद, कोखरा के हीरे इंपीरियल दरबार भेज गया |पहले इंपीरियल कारागृह और बाद में ग्वालियर के किले में राजा दुर्जन साल को कैद कर लिया गया |
कर्नल डाल्टन के अनुसार, राजा दुर्जन साल के कारावास बारह साल तक चला |नागवंशी सामंतो ने राजा के बंदी बनाये जाने पे फिर से सैन्य बल एकत्रित किया और विद्रोह कर दिया | अंततः राजा दुर्जन साल का दुर्भाग्य का कारण बना हीरा ही उसकी रिहाई और पूर्व समृद्धि हासिल होने का कारन बना | दो बहुत बड़े हीरे सम्राट जहांगीर के दरबार में लाया गया है |जहाँगीर को संदेह हुआ की इन् में से एक हीरा नकली है | उसके अदालत में कोई भी उसके इस शक की पुष्टि करने के लिए सक्षम नहीं था | हीरा राजा अपनी क़ैद से बादशाह में लाया गया | दो हीरे उनके सामने र्काहे गये उन्होंने बिना देर किया नकली की पहचान कर ली और दरबार में साबित करने के लिए तो भेड़ों के सर पर हीरा बाँध दिया गया ,उनके अपास में लड़ने से नकली हीरा टूट गया और असली पर खरोंच तक नही आई |जहाँगीर ने सरत के अनुसार उसका साम्राज्य और अभिकार वापस किया और कोखरा के सामंतो ने भी राजा का स्वागत कर मुग़ल शासन के विरुद्ध अपना विरोध शांत किया |
दुबारा कोखरा की गद्दी मिलने पे दुर्जन साल को "महाराजा " की उपाधि दी गयी और उन्होंने अपने उपनाम में "शाह " जोड़ लिया | इसके बाद के लगभग सभी कोखरा के नागवंशी राजाओं के उपनाम में शाह मिलता है | जूदेव ,सिंघ्देव और शाहदेव नागपुर और छोटानागपुर के नागवंशी राजाओं के उपनाम में जुड़ गया | इन्ही शाहदेव राजाओं ने नेपाल पे भी राज किया |
अकबर के शासनकाल तक छोटानागपुर मुगलों का आधिपत्य के तहत नहीं आया था और नागवंशी शासकों ने स्वतंत्र शासक के रूप में इस क्षेत्र पर शासन किया गया था. अकबर को सूचित किया गया की एक विद्रोही अफगान सरदार जुनैद कररानी , छोटानागपुर में शरण ले जा है , इसके अलावा, सम्राट भी इस क्षेत्र में पाए जाने के हीरे की जानकारी मिलने से भी आश्चर्य-चकित था की आखिर इस राजवंश में ऐसा क्या है की इतना खजाना और प्राकृतिक सौंदर्य के होने के वजेह से जब भी किसी राजवंश ने इन्हें अपने अधिकार में लेने के लिए आक्रमण किया है उसे हार का मूह देखना पड़ा है | नतीजतन, अकबर ने अपने विश्वस्त शाहबाज खान तुरबानी को कोखरा (छोटानागपुर के नागवंशी राजाओं की तत्कालीन राजधानी ) पर हमला करने के आदेश दिया| उस समय राजा मधु सिंह , 42 वीं नागवंशी राजा के रूप में कोखरा पर कर रहे थे |दोंनो पक्षों से लम्बे समय तक संघर्ष जरी रहा और अंत में नागवंशियों ने जान और माल की भारी नुक्सान के कारन प्रजाहित देखते हुए ,सुलह कर ली और छह हजार रुपए की राशि मुगलों को वार्षिक राजस्व के रूप में देय तय की गई थी |इतिहास का में पहली बार ऐसे साक्ष्य मिले की नागवंशी राजाओं को छोटानागपुर पे राज करते वक़्त किसी के अधीन रहना पड़ा |
जहाँगीर के शासनकाल के आगमन से, नागवंशी राजा दुर्जन साल छोटानागपुर में सत्ता में आए थे| उन्होंने सम्राट अकबर द्वारा तय किराए का भुगतान करने से इनकार कर दिया | जहांगीर ने कोखरा पर हमला करने के लिए इब्राहिम खान (बिहार के राज्यपाल) का आदेश दिया |इस आक्रमण का विवरण तुजुक -इ -जहाँगीरी , जहांगीर के संस्मरण में उल्लेख मिलता हैं | आक्रमण के पीछे एक और कारण भी था. इस क्षेत्र में संख नदी के बिस्तर में पाया जाने वाले ( जिसे अकबर राज्य को अपने अधीन करने के बाद भी नही पा सका था )हीरे का अधिग्रहण की कोशिश था | हीरे की अत्यधिक मात्र में राज में प्राकृतिक उपलब्धता और हीरे की एक विशेषज्ञ होने की वजह से राजा दुर्जन साल को "हीरा राजा "के नाम से जाना जाता था| इस प्रकार छोटानागपुर के राजा को वश में करने और मूल्यवान हीरे प्राप्त करने के लिए, जहांगीर ने छोटानागपुर पर आक्रमण करने का फैसला किया|
बादशाह के आदेश से इब्राहिम खान ने 1615 ई. में कोखरा के खिलाफ मार्च किया, वह अपने गुप्तचरों की मदद से आसानी से नागवंशी प्रदेशों में प्रवेश करता गया | राजा दुर्जन साल को और पुरे राजपरिवार को जंगलों पहाड़ियों में किसी गुफा में राज्य के सामंतो ने सुरक्षित पहुंचा दिया |युद्ध ख़तम होने से पहले किसी ने ये सूचना मुग़ल सैनिकों को दे दी ,इस गद्दार स्वरुप रजा दुर्जन साल को युद्ध ख़तम होने से पहले गिरफ्तार कर लिया गया और नागवंशी सामंतो का विरोध इसके तुरंत बाद कमजोर हो गया | राजा दुर्जन साल के राज्य में जितने भी हीरे थी सब इब्राहिम खान द्वारा कब्जा कर लिया गया | चौबीस हाथियों भी इब्राहिम खान ने बादशाह दरबार के लिए ले ली |इस के बाद, कोखरा के हीरे इंपीरियल दरबार भेज गया |पहले इंपीरियल कारागृह और बाद में ग्वालियर के किले में राजा दुर्जन साल को कैद कर लिया गया |
कर्नल डाल्टन के अनुसार, राजा दुर्जन साल के कारावास बारह साल तक चला |नागवंशी सामंतो ने राजा के बंदी बनाये जाने पे फिर से सैन्य बल एकत्रित किया और विद्रोह कर दिया | अंततः राजा दुर्जन साल का दुर्भाग्य का कारण बना हीरा ही उसकी रिहाई और पूर्व समृद्धि हासिल होने का कारन बना | दो बहुत बड़े हीरे सम्राट जहांगीर के दरबार में लाया गया है |जहाँगीर को संदेह हुआ की इन् में से एक हीरा नकली है | उसके अदालत में कोई भी उसके इस शक की पुष्टि करने के लिए सक्षम नहीं था | हीरा राजा अपनी क़ैद से बादशाह में लाया गया | दो हीरे उनके सामने र्काहे गये उन्होंने बिना देर किया नकली की पहचान कर ली और दरबार में साबित करने के लिए तो भेड़ों के सर पर हीरा बाँध दिया गया ,उनके अपास में लड़ने से नकली हीरा टूट गया और असली पर खरोंच तक नही आई |जहाँगीर ने सरत के अनुसार उसका साम्राज्य और अभिकार वापस किया और कोखरा के सामंतो ने भी राजा का स्वागत कर मुग़ल शासन के विरुद्ध अपना विरोध शांत किया |
दुबारा कोखरा की गद्दी मिलने पे दुर्जन साल को "महाराजा " की उपाधि दी गयी और उन्होंने अपने उपनाम में "शाह " जोड़ लिया | इसके बाद के लगभग सभी कोखरा के नागवंशी राजाओं के उपनाम में शाह मिलता है | जूदेव ,सिंघ्देव और शाहदेव नागपुर और छोटानागपुर के नागवंशी राजाओं के उपनाम में जुड़ गया | इन्ही शाहदेव राजाओं ने नेपाल पे भी राज किया |