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Dec 6, 2012

‘‘हिन्दुस्थान री बडी मरजाद राखी‘‘ (रावल कान्हड़देव चैहान)

 अलाउद्दीन ने सभी हिन्दु राज्यों को समाप्त करने की नीति बनाई थी तथा वह हिन्दुओं को गुलामों के समान कर देना चाहता था। 1298 ई. में उसने सोमनाथ के मंदिर को तोड़ने के लिए गुजरात पर चढ़ाई की और वहाँ मन्दिर तोड़कर, सोना लूटकर हजारों हिन्दुओं को गुलाम बनाकर अपने साथ दिल्ली ले जाने लगा। मार्ग में जालौर राज्य की सीमा में जालौर से 18 मील दूर सकराना गाँव तक उसकी सेना आ पहुँची । सेना के साथ उलूग खाँ सेनापति था। यह देख रावल कान्हड़देव ने अपने मुख्य सामन्त जैत्र देवड़ा को उसके पास भेजा और कहलाया कि तुमने इतनी बड़ी संख्या में हिन्दुओं की हत्या करके मेरे राज्य में आकर ठीक नही किया है, क्या मुझे तुमने राजपूत नही जाना ? इस संदेष के बहाने जैत्र देवड़ा ने मुसलमानों के पडाव की जानकारी ली और पाया कि गुजरात लूट को प्राप्त करने के लिए बहुत से नव मुसलमानों में असंतोष है। जैत्र देवड़ा ने उनमें मुख्य मुहम्मदशाह को अपनी ओर आने का संकेत कर दिया और जालौर लौटा। जालौर से हिन्दुत्व की रक्षार्थ एक जबरदस्त राजपूत सेना ने जैत्र देवड़ा के नेतृत्व में मुसलमानों पर धावा बोला। घमासान यु़द्ध हुआ और शत्रु का कमाण्डर मलिक आईजुद्दीन मारा गया। इसके साथ-साथ अलाउद्दीन खिलजी का भतीजा भी इस युद्ध में मारा गया। हिन्दू वीरों का प्रहार ऐसा तीव्र था कि मुस्लिम सेनापति उलूग खां बाल-बाल बचा। इस प्रकार इन भारतीय सपूतों ने हजारों हिन्दुओं को मुक्त कराया और भगवान सोमनाथ की मूर्ति को छुड़ाकर जालौर ले आए। भारी संख्या में मुसलमान काम आए। इस अप्रत्याषित घटना से मुसलमान भाग निकले और अगले 5 वर्ष तक उन्होंने इधर देखा तक नही। 1305 ई. में अलाउद्दीन खिलजी ने सिवाणा के दुर्ग को जा घेरा। वहाँ के रावल शीतल देव जालोर के रावल कर्णदेव के भतीजे थे। इस घेरे में मुसलमानों के दो कमाण्डर जिनमें एक का नाम नाहर मलिक था काम आया। अन्त में 1310 ई. में अलाउद्दीन स्वयं विषाल सेना के साथ सिवाणा के घेरे में शामिल हुआ और उसको सफला मिली।

सिवाणा के पराभव के पष्चात भी जालोर के रावल कान्हड़देव ने मुसलमानों की अधीनता स्वीकार नही की। उस परम भट्टारक हिन्दू नरेष के ऐसे साहस और गौरव को देख सुल्तान अलाउद्दीन ने जालोर विजय करने का निष्चय किया और सेना को निर्देष देकर दिल्ली चला गया। अब मुस्लिम सेना ने बाड़मेर पर आक्रमण किया और भगवान महावीर स्वामी के सुन्दर और भव्य मन्दिर को तोडा। वहाँ से मुसलमानों ने भीनमाल को आग लगा दी। भीनमाल चैहान राजपूतों की ब्रह्मपुरी थी। जहाँ 45 हजार बाह्ममण श्रीमाली वेद पाठन का महान् राष्ट्रीय कर्तव्य पूरा करते थे। हजारों ब्राह्मणों को बन्दी बनाया और उन्हे मारवाड़ से ले जाया जाने लगा। यह सब मुसलमानों ने रावल कान्हड़देव के हिन्दू गौरव को तोड़ने के लिए घृणित काम किया। राजपूतों ने राष्ट्रीय पराभाव के इन दिनों में अपना कर्तव्य निभाया और ब्राह्मणों को मुक्त करने के लिए निकल पडे़। रावल कान्हड़देव ने 36 कुलों के राजपूतों को इस देष रक्षा के लिए बुलाया था। वे क्षत्रिय गौ-रक्षा ब्राह्मण प्रतिपाल थे अर्थात् राष्ट्र के धन और विद्धानों की रक्षा और पालना के लिए उत्तरदायी थे। रावल के बुलावे पर सोंलकी, राठौड़, परमार, चावड़ा, डोडिया, यादव और गोहिल आदि सभी आए। इन सभी ने गाँव खुडाला पर जबरदस्त धावा करके बाह्मणों को मुक्त कराया और तत्काल लौट गए। उस दिन अमावस्या थी इस कारण साल्हा, सोभित लाखण और अजयसिंह 4000 सेना के साथ तालाब पर स्नान करने रूके और उस समय अचानक मुसलमानों ने उन पर दूसरा आक्रमण किया। ये लोग 4000 थे अतः सभी वहाँ काम आए।

लाखण ने जो शोर्य और पराक्रम किया उसके कारण मरने पर मुसलमानों ने उनके शव की वन्दना की। इस घटना के बाद दिल्ली से और सेना आई और मुसलमानों ने जालौर दुर्ग को घेरा। रावल कान्हड़देव ने अब राजकुमार वीरम और अपने भाई मालदेव को जालौर बुला लिया। उन्होनें अपनी सेना के 8 भाग लिए और युवराज वीरम और मालदेव तथा सामान्त अणत सिसौदिया, जैन, बाघेला, जैत देवड़ा लूणकरण, माल्हण, सोभित देवड़ा और सहजपाल को कमाण्ड़र बनाया और मुस्लिम सेना दुर्ग पर चढ़ने या आक्रमण करने में असफल रही। अतः उसने दुर्ग से एक प्रबल धावा किया गया जिससे मुस्लिम चैकी उदलपुर जो जालौर के पास थी को समाप्त कर दिया गया। दुर्ग में अन्न और जल की कमी होने लगी। तभी बरसात हुई और दुर्ग में पानी पूरा हो गया। महाजनों ने अपने अन्न भण्डार खोल दिये। यह रावल के प्रति जनता का प्रेम था परन्तु शत्रु किसी प्रकार से भी कुछ देषद्रोही खोज ही निकालता है। बीका दहिया ऐसा ही देषद्रोही था उसने रात को मुसलमानों को एक गुप्त से दुर्ग में प्रवेष करा दिया। उसे जालौर दुर्ग प्राप्त होने का प्रलोभन दिया गया था। परन्तु उस देषद्रोही को तत्काल दण्ड दिया उसी की देष भक्त धर्म पत्नी वीरांगना हीरा देवी ने बीका की तत्काल हत्या की दी और रावल को जाकस सूचना कर दी। अब दुर्ग की रक्षा कठिन थी अतः महारानी ने जौहर की तैयारी की।

गढरी परधी घेर, बैरी रा घेरा पड़या।
सत्यां काली रात ने, जौहर सूं चनण करी।।


महारानी के साथ हजारों हिन्दू सती नारियों ने अपना जीवन अग्नि को सौप दिया। रावल कान्हड़देव की रानियां-उमादे कँवलदे, जैतल दे, भवलदे, ने अग्नि प्रवेष किया। इस प्रकार वैषाख शुक्ला पंचमी सम्वत् 1368 (1311 ई.) को उत्तरी भारत का सर्व शक्तिषाली हिन्दू-राज्य समाप्त हो गया। जनमानस में जो श्रद्धा और प्रेम तथा विष्वास रावल कान्हड़देव को प्राप्त था उसका अनुमान इसी से लगाया जाता है कि लोगों नें उन्हे अमर माना और यही कहा कि दुर्ग पतन के बाद अन्र्तध्यान हो गए थे। उनके बाद भी युवराज वीरम ने मुसलमानों से तीन दिन तक युद्ध किया और काम आये|

संसार के इतिहास में केवल भारत में ही जौहर की परम्परा रही है। यह पवित्रता ही वह गुण है जिसके कारण भारतीय नारी जग पूजित है। राजस्थान का इतिहास जौहर की घटनाओं से परिपूर्ण है। इस उत्सर्ग से भारत की गरिमा के बहुत वृद्धि हुई और यह सदा प्रेरणादायी रहेगा। जालौर के निष्चय हो जाने के पश्चात् वीर हिन्दू नारियाँ स्नान कर, पूजा करती थी और तुलसी दल की माला पहनती थी। वे पूरा श्रृंगार करती थी और महारानी की अगुआई में चिता में प्रवेष करती थी। ऐसी नारियों के बल पर ही भारत की रक्षा सम्भव हो सकी थी|

सौजन्य: अनिरूध सिंह सोहनगढ़

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