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Oct 28, 2012

जातिय भावनाओं का राजनैतिक दोहन ना होने दे राजपूत समाज

देश की आजादी के बाद से सत्ता हासिल करने के लिए सभी राजनैतिक दल वोट प्राप्त करने हेतु विभिन्न जातियों की जातिय भावनाओं का दोहन करने में लगे है| और देश की सभी जातियां व सम्प्रदाय अपने छोटे-छोटे हितों के लिए राजनैतिक दलों द्वारा जातिय भावनाओं का दोहन करवाने में लगी है| इनमें कई जागरूक जातियां या समुदाय आसानी से राजनैतिक दलों को अपनी भावनाओं का दोहन नहीं करने देते बल्कि यूँ कहूँ कि भावनाओं के दोहन के बदले अपना पूरा तुष्टिकरण करवाते है| पर राजपूत समाज इस मामले में बहुत पीछे व उदार रहा कि जब जिसने चाहा राजपूतों की जातिय भावनाओं का दोहन कर उनके वोट हथिया लिए और बदले में उन्हें कुछ नहीं दिया|

राजपूतों के जातिय भावनाओं का राजनैतिक दोहन करने में राजस्थान के पूर्व राजघराने सबसे आगे रहे और राजनैतिक दलों ने भी चुनावों में वोटों के लिए जब भी राजपूतों की जातिय भावना के दोहन की जरुरत पड़ी तब उन्होंने किसी साधारण राजपूत को उम्मीदवार बनाने के बजाय पूर्व राजघराने के सदस्यों का ही साथ लिया और उन्हें ही आगे रखा| यही कारण रहा कि राजनीति में राजपूत समाज के लोगों की संख्या बहुत कम है| और राजपूतों का राजनीति में प्रतिनिधित्व पूर्व राजघरानों के सदस्य ही करते है जिनसे कभी किसी साधारण व आम राजपूत को कोई काम पड़ता है तो उसका उनसे काम निकलवाना तो दूर अपनी समस्या बताने के लिए उनके पास पहुंचना भी मुमकिन नहीं|

पिछले लोकसभा चुनावों में वोटों के लिए राजपूतों की जातिय भावनाओं का दोहन करने का जोधपुर में एक नायाब उदाहरण देखने को मिला| इस बार के लोकसभा चुनावों में परिसीमन के चलते जोधपुर लोकसभा क्षेत्र राजपूत बहुल हो गया| चूँकि भाजपा राजपूतों को अपना पारंपरिक वोट बैंक मानती है उसे पता है कि राजपूत कांग्रेस विरोधी है इस वजह से उनका भाजपा को वोट देना पक्का है और शायद भाजपा राजपूतों का भाजपा को वोट देने की मज़बूरी भी समझती हो, और यही मज़बूरी समझ उसने भाजपा के किसी राजपूत कार्यकर्ता या नेता को टिकट नहीं देकर जसवंत सिंह विश्नोई को उम्मीदवार बनाया ये सोचकर कि राजपूतों के पास तो उसे वोट देने के अलावा कोई रास्ता ही नहीं तो वो उनका ख्याल क्यों रखे ? चूँकि जोधपुर लोकसभा क्षेत्र मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का गृह नगर है और वह सीट जीतना उनके लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न था और वे जानते थे कि राजपूतों के वोट कांग्रेस के लिए जुटाना आसान नहीं है इसलिए उन्होंने भी वोटों के लिए राजपूतों की जातिय भावनाओं का दोहन करने के लिए जोधपुर राजघराने की बेटी और हिमाचल की पूर्व महारानी चंद्रेसकुमारी जी को लाकर चुनाव में कांग्रेस का उम्मीदवार बना दिया और उनके खड़े होते ही जोधपुर के राजपूतों ने चुनाव में उनकी जीत को अपनी जातिय प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाकर उन्हें रिकार्ड मतों से जीता भी दिया पर यह करते उन्होंने यह नहीं सोचा कि इस चाल से अशोक गहलोत ने उनकी जातिय भावनाओं का दोहन लिया और क्या कभी अपने किसी कार्य के लिए वे चंद्रेसकुमारी से मिल भी पाएंगे ? यदि अशोक गहलोत वाकई राजपूतों के हितैषी होते तो चंद्रेसकुमारी की जगह किसी आम कांग्रेसी राजपूत कार्यकर्त्ता को उम्मीदवार बनाते जो समाज के बीच में रहता हो और कार्य करता हो| पर उन्हें राजपूत समाज के भले से कोई मतलब ना था उन्हें तो सिर्फ जातिय भावनाओं का दोहन कर जोधपुर लोकसभा सीट जीतनी थी जो पूर्व राजघराने को साथ मिलाकर जीत ली| ठगा गया तो आम राजपूत पर सिर्फ अपनी अदूरदर्शिता के चलते|
यदि समाज में थोड़ी भी दूरदर्शिता व राजनैतिक समझ होती तो कांग्रेस या भाजपा पर दबाव डालकर अपने किसी ऐसे उम्मीदवार को लोकसभा में भेजते जो समाज के बीच में रहता हो, समाज के दबे कुचले लोगों के लिए संघर्ष करता हो, आमजन के लिए कभी भी सहज उपलब्ध रहता हो, अपने क्षेत्र की जनता की समस्याओं को समझता हो महसूस करता हो|

पर अफ़सोस राजपूत समाज बिना सोचे समझे अपनी जातिय भावनाओं का दोहन करा बैठता है|

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