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Jul 8, 2011

हमारी भूलें : मूल आराधना पद्दति की खोज नहीं करना

वह समाज व उसका धर्म कभी जीवित नहीं रह सकता जो निरंतर खोज काय में संलग्न नहीं रहता | क्योंकि प्रकृति का यह नीयम है कि वह चीजों को बनती व बिगाड़ती रहती है | अतः जिन वस्तुओं को प्रकृति ने समय पाकर नष्ट कर दिया है , उनकी पुनः पुनः खोज करते रहना हमेशा आवश्यक है |
हमारी ' प्राणगत' व 'हृदयगत' साधना का उल्लेख पहले विस्तार से किया जा चूका है | यहाँ पर इस विषय में केवल इतना ही कहना उपेक्षित है कि आज के समय कि सबसे बड़ी आवश्यकता यह है कि हम हमारी भूल आराधना पद्दति की पुनः खोज आरम्भ करें | बिना किसी सहारे के इस कार्य को आरम्भ करना व उसमे सफलता प्राप्त करना चाहे कठिन आवश्य लगे , लेकीन एक बार अपने आप की खोज आरम्भ कर देंगे , तो हमें यह समझते देर नहीं लगेगी कि ' युक्ष्म जगत ' में हमारा मार्ग दर्शन करने वाले लोग मौजूद है , व उनसे हमे हर कठिन परिस्थिति में मार्ग दर्शन प्राप्त होगा |
यही कारण है कि शास्त्रों के नष्ट हो जाने या उन्हें विकृत कर देने के बाद भी धर्म नष्ट नहीं किया जा सकता क्योंकि वास्तविकता को जानने वाले व इस स्थूल जगत का संचालन करने वाले वे लोग है जो सूक्ष्म जगत में निवास करते है | परिस्थितियां उन्हें नष्ट नहीं कर सकती | इसलिए सत्य आँखों से ओझल हो सकता है , उसे घूमिल किया जा सकता है | जो सत्य कि खोज में निकलेगा उसका साक्षात्कार सत्य से अवश्य होगा |
लेखक : श्री देवीसिंह महार
क्षत्रिय चिन्तक


श्री देवीसिंह जी महार एक क्षत्रिय चिन्तक व संगठनकर्ता है आप पूर्व में पुलिस अधिकारी रह चुकें है क्षत्रियों के पतन के कारणों पर आपने गहन चिंतन किया है यहाँ प्रस्तुत है आपके द्वारा किया गया आत्म-चिंतन व क्षत्रियों द्वारा की गयी उन भूलों का जिक्र जिनके चलते क्षत्रियों का पतन हुआ | इस चिंतन और उन भूलों के बारे में क्यों चर्चा की जाय इसका उत्तर भी आपके द्वारा लिखी गयी इस श्रंखला में ही आपको मिलेगा |

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