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Jul 3, 2011

हमारी भूलें : कार्य व मार्गदर्शन की अवास्तविक मांग

आज लोग कहते है - " हम काम करना चाहते है , लेकिन हमको कोई काम देने वाला नहीं है | हम सामजिक व आध्यात्मिक दोनों क्षेत्रों में मार्गदर्शन के लिए तड़प रहे है लेकिन हमको कोई मार्गदर्शन देने वाला नहीं है| " यह दोनों की मांगे पूरी तरह से असत्य व अपने आप को धोके में डालने वाली है|

जो कार्य करना चाहता है , उसको काम करने से संसार की कोई शक्ति नहीं रोक सकती और जो मार्ग को खोजना चाहता है , उसे मार्ग को प्राप्त करने से कोई भी शक्ति नहीं रोक सकती| काम की मांग करना अपनी निष्क्रिय पे पर्दा डाल कर अपने आप को भ्रमित करना है |
लोग कहते है कि हम श्री क्षत्रिय युवक संघ में काम करना चाहते है | हम काम तब करें , जब हमको कोई अधिकृत व्यक्ति काम करने के लिए कहे | अगर हम वास्तविकता में जाएँ तो यह कथन कतई सही नहीं है , क्योंकि इस कथन के साथ भी दुराग्रह जुड़े हुए है | क्षत्रिय युवक संघ कोनसा है ? इसकी परिभाषा भी हम करें| उस प्रकार से हो तो हमें स्वीकार है अन्यथा नहीं | काम क्या हो व कैसा हो ? यह भी हम कहें जैसे तो तो ठीक है है अन्यथा गलत| फिर काम व मार्गदर्शन कि मांग कहाँ रह जाती है ? यह सब निष्क्रियता को छिपाने के बहाने है |
अगर कोई व्यक्ति समाज मै काम करना चाहता है तो उसे कोन रोक रहा है ? समाज मै हजारों तरह कि बुराइयाँ है , उनके निवारण केलिए उतने ही कार्यक्षेत्र है| हम कार्य क्षेत्र में उतर सकते है , लोगों से सहयोग मांग सकते है| सहयोग मिलेगा व कार्य होगा , किन्तु यह सब कुछ हम करना नहीं चाहते है| हम तो पड़े पड़े नेता बनना चाहते है , पद चाहते है व यश चाहते है| यह सब उपार्जन कि वस्तुएं है , जिनको हम बिना श्रम किये प्राप्त करना चाहते है , जिसकी कोई संभावना नहीं है |

आज हमारी निष्क्रियता कि अवस्था यहाँ तक दयनीय हो गई है कि कार्य करना व शाखायें चलाने कि बात तो दूर रही , महीनों व वर्षों तक आपस में मिलते नहीं , फिर भी दुसरे लोगों के बारे मै बिना जाने , पड़े पड़े निंदा व आलोचना करते रहते है|
सक्रियता ही जीवन है व निष्क्रियता मृत्यु| आध्यात्मिक क्षेत्र में प्रविष्टि होने कि पहली सीढ़ी है , सुकर्म में प्रवृत होना| बिना सुकर्म में लगे अपने आप को जानने कि प्रेरणा जागृत नहीं हो सकती| अतः जिन लोगों में अपने आपकी खोज करने की उत्कष्ट अभिलाषा नहीं है , उन्हें आध्यात्मवाद के मार्ग पर अग्रसर होने की चेष्टा करने के बजाय सदा सुकर्मों में लगे रहने की चेष्टा करनी चाहिए , ताकि अपने आप की खोज के लिए वास्तविक लगन व वास्तविक पीड़ा स्वतः ही पैदा हो सके|

जो लोग आध्यात्मिक क्षेत्र में मार्गदर्शन की मांग कर रहे है , उनकी भी मांग उतनी ही अवास्तविक है जीतनी सामजिक क्षेत्र में कार्य करने वालों की मांग अवास्तविक है| क्षत्रियों की आराधना व साधना पद्दति ' प्राणगत 'व ' हृदयगत ' साधना है| हमारे ह्रदय में प्रतिष्ठित ' प्राण ' हमारा मार्गदर्शन करने के लिए सतत प्रयत्नशील है , फिर हम किससे मार्गदर्शन की मांग कर रहे है ? आवश्यकता केवल इतनी ही है कि हम सहज भाव से व सहज गति से अपनी सात्विक साधना को कायम रखते हुए हमारे मार्गदर्शक ' प्राण ' कि खोज के कार्य को गति दें| अपने आपको जानने के लिए व्यथा व पीड़ा कि ज्योति को जागृत करें व उसे सतत ज्वलंत रखने कि चेष्टा करें|
लेखक : श्री देवीसिंह महार
क्षत्रिय चिन्तक


श्री देवीसिंह जी महार एक क्षत्रिय चिन्तक व संगठनकर्ता है आप पूर्व में पुलिस अधिकारी रह चुकें है क्षत्रियों के पतन के कारणों पर आपने गहन चिंतन किया है यहाँ प्रस्तुत है आपके द्वारा किया गया आत्म-चिंतन व क्षत्रियों द्वारा की गयी उन भूलों का जिक्र जिनके चलते क्षत्रियों का पतन हुआ | इस चिंतन और उन भूलों के बारे में क्यों चर्चा की जाय इसका उत्तर भी आपके द्वारा लिखी गयी इस श्रंखला में ही आपको मिलेगा |

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