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Jun 27, 2011

हमारी भूलें : अध्ययन के प्रति रुचि का अभाव

प्रयाग को तीर्थ राज इसलिए कहा जाता है कि वह गंगा , यमुना व सरस्वती का संगम है | इसी प्रकार तप , स्वाध्याय , और सत्संग की त्रिवेणी का जिस व्यक्ति के जीवन में संगम नहीं होता , वह ज्ञान व मोक्ष की प्राप्ति नहीं कर सकता और न ही इस संसार में अपने कर्म को सिद्ध कर सकता | सत्य पर आधारित होकर भगवद्ध नाम जप कलियुग में सबसे बड़ा तप है | लेकिन जब तक स्वाध्याय चिंतन व मनन के द्वारा मन , बुद्धि व अहंकार की कुटिल गलतियों को समझकर उनका शोधन नहीं किया जाय , तब तक मात्र तप सत्य असत्य का बोध नहीं करा सकता | तप के द्वारा संपन्न हुआ व्यक्ति ज्ञान के अभाव में कुमार्गगामी भी हो सकता है | सत्यसंग व्यक्ति के अनेक जन्मो से बने स्वभाव को शुद्ध कर शुद्ध ज्ञान के उपार्जन में उसकी मदद करता है और पथ भ्रष्ट होने से बचाता है |

अपनी पुस्तक महाभारत की भूमिका लिखते हुए चक्रवर्ती राज गोपालाचार्य ने एक बहुत विलक्षण बात लिखी है | उन्होंने लिखा है की आज के लेखक जो कहानियां लिखते है , वे सुखांत व दुखांत होती है | किन्तु महाभारत व रामायण में जिन कथाओं का वर्णन है , उनको पढ़ने से हृदय द्रवित होता है | तुलसीदास जी लिखते है "द्रवर्हि जानकी कंत , तब छूटे संसार दुःख" व्यक्ति का हृदय जब द्रवित होता है , तब ही भगवान् द्रवित हो सकते है | सद - साहित्य के अध्ययन से व्यक्ति का हृदय द्रवित होता है | उसका अहंकार टूटता है व सन्मार्ग पर आगे बढ़ने की अभिलाषा जागृत होती है |

सदसाहित्य की रचना भी इसी प्रकार हुई है | व्यक्ति जब स्वयं द्वारा उपार्जित ज्ञान से अपने आपको बोझिल अनुभव करता है , तो हल्का करने के लिए व लोक कल्याण हेतु हेतु कुछ बातें कहता है या लिखता है , ताकि आने वाली पीढ़ीयां उसका लाभ उठा सके |
तैत्रियोपनिषद की 'शिक्षा बल्लरी 'में गुरु अपने शिष्य को अंतिम उपदेश देते हुए कहते है , " सत्य बोल , धर्म का आचरण कर , स्वाध्याय में प्रमाद न कर " | स्वाध्याय का इतना महत्व इसलिए है कि व्यक्ति अपनी साधना द्वारा व अपने कर्म द्वारा जो भी अनुभव प्राप्त करता है , शास्त्र से उसका समर्थन मिल जाने पर वह अनुभव , पिष्ट ज्ञान में परिवर्तित हो जाता है |

जो समाज अध्ययन , चिंतन व मनन में प्रबृत हुए बिना , अपने विकास कि कल्पना करता है वह धीरे धीरे पशुगत संस्कारों कि और बढ़ता चला जाता है | भगवान् राम के काल का उन्नत भील समाज , जो हमारे समाज का अभिन्न अंग है , इसी शिक्षा , अध्ययन व चिंतन , मनन के प्रभाव में आज पूर्ण रूप से पशु संज्ञा में पंहुच चूका है |
आज के युग में जब संसार के समस्त राजनैतिक , आर्थिक सामजिक क्षेत्रों में बुद्धिजीवियों का कुचक्र सफलता पूर्वक उत्पीडन कर रहा है , उस समय अध्ययन ,चिंतन व मनन से विहीन कोई व्यक्ति या समाज अपनी सुरक्षा कि कल्पना नहीं कर सकता |

यदि बुद्धिजीवियों के कुचक्र को तोडना हो , तो अध्ययन चिंतन व मनन के साथ साथ तपस्या कि शक्ति भी अर्जित करनी होगी , जिसके बल से समाज को खतरनाक षड्यंत्र कि जानकारी दी जाय व साथ ही शक्ति द्वारा षड्यंत्र का मुकाबला किया जा सके |

लेखक : श्री देवीसिंह महार
क्षत्रिय चिन्तक


श्री देवीसिंह जी महार एक क्षत्रिय चिन्तक व संगठनकर्ता है आप पूर्व में पुलिस अधिकारी रह चुकें है क्षत्रियों के पतन के कारणों पर आपने गहन चिंतन किया है यहाँ प्रस्तुत है आपके द्वारा किया गया आत्म-चिंतन व क्षत्रियों द्वारा की गयी उन भूलों का जिक्र जिनके चलते क्षत्रियों का पतन हुआ | इस चिंतन और उन भूलों के बारे में क्यों चर्चा की जाय इसका उत्तर भी आपके द्वारा लिखी गयी इस श्रंखला में ही आपको मिलेगा

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