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Apr 6, 2011

राजपूत का उत्थान बिना क्षत्रित्त्व के संभव ही नहीं है

Kunwarani Nisha Kanwar
राजपूत के उत्थान की कल्पना भी नहीं की जासकती यदि वो क्षत्रित्त्व को पुनः धारण ना करे तो ,,,,,,,,,,

आज कुछ लोग राजपूत उत्थान (विकास) के लिए तड़फ रहे है, किन्तु मानसिक दासत्व से दूर होना नहीं चाहते है |दासत्व और क्षत्रित्व का भला कभी साथ होसकता है ????

पतन और दासत्व एक ही अर्थ वाले दो शब्द मात्र है |इसलिए मानसिक दासत्व से दूर हुए बगेर ,उत्थान जैसे शब्दों का क्या अर्थ रह जायेगा |भला कोई किसी कारागार मै सुविधाओ की मांग से कोई कैदी स्वतंत्रता का रस लेसकता है ??

क्या कारागार के स्वर्ण भवन या स्वर्ण लंका में माता सीता प्रशन्न थी ???

क्षत्रित्व के बगेर राजपूत के उत्थान की परिकल्पना ठीक उसी तरह है जैसे कि कोई कैदी सोचे कि इस कारागार में यदि वातानुकूलित कक्ष आवंटित होजाय तो हमारा जीवन का कल्याण होजायेगा |शारीरिक दास और मानसिक दास में एक विशेष अंतर है,वो यह कि शारीरिक दास तो अपनी स्वतंत्रता के लिए प्रयासरत रहता है जबकि मानसिक दास तो दासत्व को ही धर्म,और अपना आदर्श मान लेता है,,,,,

मानसिक दासता तो स्थायी रूपसे आपके ह्रदय में अपना डेरा जमा लेती है ,,,,,,और आपके विवेक को बिना मोल किसी को भी गिरवी(रहन) रख देती है|

इसलिए इसका असर तो भावी पीढ़ीयां विरासत में लेकर अति-प्रशन्न होती है | इसलिए मानसिक दासता तो शारीरिक दासता से कहीं अधिक खतरनाक है |किन्तु यह निष्कर्ष भी तो वही निकल पायेगा, जो स्वयं विवेक-शील(बुद्ध) होगा , यानि मानसिक-दास नहीं होगा |

"हमारी भूले" में आदरणीय श्री देवी सिंह जी महार साहब ने ठीक ही तो सिद्ध किया हैकि , यह "राजपूत,हिन्दू,और सिंह जैसे सम्बोधन तो हमारे राजनितिक और परंपरागत वर्ग-शत्रुओं ने एक षड़यंत्र के तहत हमें दिए है ताकि हम क्षत्रिय होने पर गर्व करने के बजे राज-कुल ,राजकुमार, और किसी जानवर से अपनी तुलना करने में ज्यदा गौरव महसूस करने लगे,और दुर्भाग्य से हमारे शत्रुओं का यह षड़यंत्र पूर्ण सफल रहा है |

हमने इन शब्दों को स्वीकार कर अपने अस्तीत्व को प्राणघातक खतरे में डाल दिया, जबकि क्षत्रिय से श्रेष्ट कोई शब्द आज तक किसी शब्द कोष में उपलब्ध ही नहीं है क्योंकि ,ईश्वर के गुण जिसमे न्यूनतम आवश्यकता हो उस शब्द कि तुलना केवल,किसी राजकुल ,और किसी जानवर के केवल एक गुण शौर्य मात्र से तुलना कर अपनी मुर्खता को गौरव का भी नाम दे दिया गया |वह री मानसिक दासता ,,,,इसलिए दास कभी क्षत्रिय नहीं हुआ करते |और उनका विनाश निश्चित होता है चाहे वो इस समस्त भूमंडल के चक्रवृति सम्राट ही क्यों ना रहे हो,,,,,इसलिए यदि राजपूत का उत्थान करना है तो उसे स्वधर्म क्षात्र-धर्म को पुनःअंगीकार करने के अतिरिक्त कोई विकल्प हो ही नहीं सकता है |इसलिए राजपूत का उत्थान केवल और केवल क्षत्रित्त्व में ही निहित है,,,,,

"जय क्षात्र-धर्म "
Kunwarani Nisha Kanwar
shri kshatriya veer jyoti

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