राजनीति में सत्ता में बने रहने के लिये राजनीतिज्ञ प्राचीन काल से ही तरह तरह की चालें व हथकंडे अपनाते आये है, आजकल के राजनेता भी अपने पूर्वर्ती राजनेताओं की तरह हथकंडे अपनाने में लगे है, विरोधियों को निपटाने या अपने पक्ष में करने के लिए विभिन्न हथकंडे अपनाते है तरह तरह की चालें चलते है, इन हथकंडों में राजनेता न अपनी पार्टी का फायदा देखते ना अपने उन समर्थकों के हितों का ख्याल रखते जिनके वोटों रूपी कंधे पर चढ़ वे सत्ता के शिखर पर पहुंचे होते है| वे सिर्फ और सिर्फ अपना हित साधते है और हम मतदाता फालतू ही उनके समर्थन में या किसी पार्टी की विचारधारा के मानसिक गुलाम बन उनके हित साधन के औजार बन जातें है|
ऐसा ही एक उदाहरण निम्न है जिसमें एक वर्तमान नेता जी की चालों व हथकंडों पर विश्वस्त सूत्रों से मिली जानकारी के आधार पर प्रकाश डाला गया है-
राजस्थान में एक विधानसभा क्षेत्र है डीडवाना, जहाँ के एक विधायक वसुंधरा राजे की भाजपा सरकार में मंत्री थे, डीडवाना विधानसभा क्षेत्र में जाट मतदाता पारम्परिक रूप से कांग्रेस को वोट देते है तो राजपूत मतदाता भाजपा के पारम्परिक वोट है, इस क्षेत्र में कायमखानी मुसलमान भी अच्छी खासी संख्या में है जिनके पूर्वज कभी राजपूत थे अत: इनका अब भी राजपूत समाज के पारस्परिक संबंध अच्छे है, इन्हीं सम्बन्धों को देखते हुए भाजपा उक्त विधानसभा क्षेत्र से मुस्लिम प्रत्याशी उतारती है ताकि राजपूत, कायमखानी वोटों के सहयोग से सीट जीती जा सके| और उसका यह प्रयोग तत्कालीन चुनावों में सफल भी रहा, जब भाजपा ने युनुस खान को डीडवाना विधानसभा से चुनाव मैदान में उतरा|
युनुस खान के चुनाव प्रचार में राजपूत युवाओं ने दिलोजान से अपनी भागीदारी निभाई और उन जाट बहुल क्षेत्रों में जहाँ युनुस खान को घुसने के लिए संघर्ष करना पड़ता था वहां सभाएं तक करवाई| श्यामप्रताप सिंह रुवां जैसे कार्यकर्ताओं ने अपनी गाड़ियाँ यूनस खान के प्रचार में झौंक साम्प्रदायिक सदभाव की मिसाल तक कायम की| ज्ञात हो उक्त चुनाव में श्यामप्रताप सिंह की एक गाड़ी कांग्रेसियों के पथराव में पूरी तरह टूट कर ख़त्म हो गयी थी| आखिर चुनाव में युनुस खान जीते और वसुंधरा सरकार में मंत्री बनाये गये|
उनके कार्यकाल में ही जून २००६ में डीडवाना में शराब व भूमाफिया के दो गुटों के गैंगवार में एक जीवणराम नाम के जाट की मृत्यु हो गयी जिसे इन माफिया गैंगों व राजनेताओं ने अपने बचाव, सहयोग प्राप्त करने व राजनैतिक फायदे हेतु जातिय झगड़े का रूप दे कर प्रचारित कर दिया| और जातिय झगड़ा दिखाने हेतु कई निर्दोष राजपूत युवकों को हत्याकांड में फंसा दिया|
चूँकि चुनावों में राजपूत मतदाताओं ने तत्कालीन मंत्री युनुस खान को वोट व समर्थन दिया था अत: निर्दोष राजपूत युवकों को झूंठे मुकदमें से बचाने हेतु समाज का एक प्रतिनिधि मंडल जयपुर मंत्री युनुस खान के बंगले पर मिलने गया| लेकिन युनुस खान ने इस मामले में अपने विरोधियों से मिलकर उन्हें अपना बनाने का षड्यंत्र रचा और जो राजपूत युवा उस कांड से पहले उनके बेडरूम तक में बिना किसी रूकावट के चले जाया करते थे, मंत्री जी ने उन्हें भी मिलने के लिए तीन तीन घंटे इन्तजार करवाना शुरू कर दिया| और गैंगवार में घायल जो कभी मंत्री जी के कट्टर विरोधी थे और अस्पताल में भर्ती थे से चुपचाप तत्कालीन मंत्री मिलने गए और समझौता कर लिया| हालाँकि मिलने की बात पर तत्कालीन मंत्रीजी इंकार करते है पर उनके उस गोलीकांड के घायलों से मिलने के वक्त उनकी सुरक्षा में लगी पुलिस की ड्यूटी जो पुलिस थाने की “आम रोजनामचा” रिपोर्ट में दर्ज है पढने के बाद साफ़ हो जाता है कि तत्कालीन मंत्री जी सवाई मानसिंह अस्पताल में डीडवाना गोली कांड के घायलों से मिलने गए थे| (प्रमाण के लिए आप यहाँ क्लिक पुलिस के “रोजनामचा आम” की आरटीआई से प्राप्त प्रमाणित प्रति यहाँ देख सकते है जिसमें स्पष्ट लिखा कि उस रोज तत्कालीन मंत्री जी की सुरक्षा में कौन कौन पुलिसकर्मी तैनात किये गए और मंत्रीजी अस्पताल किससे मिलने आये थे)
एक विधायक अपने क्षेत्र के किसी भी घायल व्यक्ति या गुट से मिलने आता तो किसी को कोई आपत्ति नहीं पर यदि यही कार्य वह चोरी छुपे करे और झूंठ बोले तब उसकी नियत पर शक होना लाजिमी है|
इतना नही नही इन तत्कालीन मंत्रीजी की दूसरी चाल या हथकंडा देखिये- उन्होंने राजपूत समाज के प्रतिनिधि मंडल जो निर्दोष युवकों के मुकदमें से बचाने की अपील करने गए थे से कहा कि – “इसके लिए मुझे मुख्यमंत्री जी बात करनी पड़ेगी और चूँकि आप नागौर जिले राजपूत है अत: नागौर जिले के एक मात्र मंत्री गजेन्द्र सिंह जी खिंमसर मेरे साथ जाये तो अच्छा रहेगा सो आप एक बार गंजेंद्र सिंह जी खिंमसर के पास जाकर उनसे बात करे|”
यह सून प्रतिनिधिमंडल गजेन्द्र सिंह जी खिंमसर के पास गया और उनसे निर्दोष युवकों को बचाने हेतु युनुस खान के साथ मुख्यमंत्री से मिलने की बात कही, पर गजेन्द्र सिंह जी खिंमसर ने प्रतिनिधि मंडल को किसी बहाने टरका कर वापस युनुस खान के पास भेज दिया| जब प्रतिनिधि मंडल के लोग वापस युनुस खान के बंगले पर आये और उनसे बातचीत करने लगे तभी युनुस खान के पास गजेन्द्र सिंह खिंमसर का फोन आया, सूत्रों के अनुसार युनुस खान ने गजेन्द्र सिंह जी से बात करते समय फोन का स्पीकर ऑन कर दिया ताकि वे जो कहे वहां उपस्थित राजपूत समुदाय के लोग सून सके|
गजेन्द्र सिंह जी फोन पर युनुस खान से कहने लगे कि – “अपने क्षेत्र के इन फफूंद राजपूतों के मेरे पास मत भेजा कर अपने आप इनसे जैसा चाहे निपट लिया कर|(कुछ ऐसे ही घटिया शब्द गजेंद्रसिंह खिंमसर ने प्रयोग किये, इसीलिए हम कहते है कि ये किले, महलों वाले आम राजपूत को राजपूत तब तक ही मानते है जब तक उसकी भावनाओं का दोहन करना होता है)”
इस तरह की बात कर युनुस खान ने एक तीर से दो शिकार कर लिये पहला- गंजेंद्र सिंह खिंमसर की सोच को राजपूत प्रतिनिधियों के आगे नंगा कर दिया और दूसरा राजपूतों को बिना कुछ कहे यह भी जता दिया कि- “देखा आपके अपने आपके लिए कुछ नहीं करते तो मुझसे उम्मीद क्यों ? जबकि मतदाता उसी से उम्मीद करेगा जिसे वह अपना प्रतिनिधि चुनता है| यदि डीडवाना क्षेत्र के मतदाताओं को किसी सहायता की आवश्यकता होती है तो उसी क्षेत्र के जन प्रतिनिधि को बिना जात-पांत देखे कानून सम्मत सहयोग कर चाहिये|
पर नहीं ! इस मामले में युनुस खान ने खेल खेला कि राजपूत वोट तो उसे मिलते ही है जाट वोटों पर भी कुछ कब्ज़ा करलो, भले उसके इस हथकंडे से उसके परम्परागत समर्थकों का अहित ही हो|
खैर.....युनुस खान को उसके द्वारा किये का फल पिछले चुनावों में मिल गया जब एक राजपूत युवा श्यामप्रताप सिंह ने उसके कृत्यों से नाराज हो उसके खिलाफ चुनाव लड़ा और युनुस खान को चुनाव हरा दिया| इस बार भी श्याम प्रताप सिंह बसपा के टिकट पर चुनाव मैदान में है और सूत्रों के अनुसार युनुस खान पिछली हार के अनुभव से सबक ले डीडवाना से चुनाव नहीं लड़ने के मूड में है पर लगता है भाजपा बिना सोचे समझे व सबक लिए फिर उसे चुनाव में उतारकर बलि का बकरा बनाने में जुटी है|
नोट : यहाँ यह सब लिखने का कारण सिर्फ और सिर्फ इन तथाकथित समाज के ठेकेदार नेताओं के हथकंडों व राजनैतिक चालों से आम लोगों को जागरूक करना है ताकि ये नेतागण आम लोगों की जातिय भावनाओं का अपने हित में दोहन ना कर सके|
आप किसको समर्थन कर रहें है ? किसको नहीं ! ये आपके विवेक पर है और ये आपका लोकतांत्रिक अधिकार भी है कि आप अपनी मर्जी से किसी को चुने !!