॥क्षत्रिय धर्म॥
जब क्षत्रिय शाषन करता था।
तो पुरा जगत भारत से डरता था॥
धीरे धीरे क्षत्रिय धर्म का लोप हुआ।
तब से अधर्मीयोँ का यँहा प्रकोप हुआ।
क्षत्रियोँ ने अपने धर्म और सँस्कारो को जब से छोङा है।
राम की मर्यादा और सत्य के बन्धन को जब से हमने तोङा है॥
जब से दुनीयाँ हमारा अपमान खुलेआम करती है।
भुगत रही है जनता आतँक की टोलीया उनका कत्ल खुलेआम करती है॥
लाखो तारो से भी एक सूरज का तेज भारी है।
क्योकी पथ नहिँ बदला है सुर्य देव ने इसिलिये उनका तेज आजतक जारी है॥
आह्रवान करता हु अपनालो क्षत्रिय धर्म और सँस्कारो को।
उठालो हनुमान की तरह बीङा देश से बाहर कर दो देश के गद्दारो को॥
जिस दिन सोया हुआ क्षात्र धर्म जाग जायेगा।
पाप, अधर्म और अन्याय अपने आप देश छौङ के भाग जाएगा॥
जय क्षत्रिय धर्म॥
जय क्षत्रिय एकता॥
जय भारत माता॥
हरीनारायण सिँह राठौङ
जब क्षत्रिय शाषन करता था।
तो पुरा जगत भारत से डरता था॥
धीरे धीरे क्षत्रिय धर्म का लोप हुआ।
तब से अधर्मीयोँ का यँहा प्रकोप हुआ।
क्षत्रियोँ ने अपने धर्म और सँस्कारो को जब से छोङा है।
राम की मर्यादा और सत्य के बन्धन को जब से हमने तोङा है॥
जब से दुनीयाँ हमारा अपमान खुलेआम करती है।
भुगत रही है जनता आतँक की टोलीया उनका कत्ल खुलेआम करती है॥
लाखो तारो से भी एक सूरज का तेज भारी है।
क्योकी पथ नहिँ बदला है सुर्य देव ने इसिलिये उनका तेज आजतक जारी है॥
आह्रवान करता हु अपनालो क्षत्रिय धर्म और सँस्कारो को।
उठालो हनुमान की तरह बीङा देश से बाहर कर दो देश के गद्दारो को॥
जिस दिन सोया हुआ क्षात्र धर्म जाग जायेगा।
पाप, अधर्म और अन्याय अपने आप देश छौङ के भाग जाएगा॥
जय क्षत्रिय धर्म॥
जय क्षत्रिय एकता॥
जय भारत माता॥
हरीनारायण सिँह राठौङ