आजकल राजपूत समाज में अभिवादन का एक स्वरुप बहुत प्रचलित हो रहा है,"खम्मा घणी" जबकि हमारे समाज में ये अभिवादन कभी नहीं था| हमारे समाज के अभिजात्य वर्ग,यथा राजा,व जागीरदारों ने आम राजपूत से अपने आप को प्रथक प्रदर्शित करने के प्रयोजन से गुलामी के इस शब्द को अपना लिया, जिसका शाब्दिक अर्थ स्वयं उनको ज्ञात नहीं है।
खम्मा घणी का शाब्दिक तात्पर्य निम्नानुसार है,,,,खम्मा = क्षमा, घणी = बहुत अधिक। हमारी क्षत्रिय संस्कृति में प्रारम्भ से ही बड़ो के सामने बोलने से पूर्व अनुमति लेने का रिवाज रहा है, इसी कड़ी में जब राजाओं महाराजाओं के समक्ष उनकी सेवक जाति के प्रतिनिधि जब कुछ निवेदन करना चाहते थे तो वे बोलने से पहले क्षमा का निवेदन सम्मान के स्वरुप में करते थे, क्षमा का अपभ्रंश ही खम्मा है| जैसे ब्रिटिश शासन में लार्ड साहब को लाट साहब कहा जाने लगा था।
हमारे पूर्वज अपने अभिवादन में अपने कुल देवी देवताओ का स्मरण करते थे, जैसे - जय चार भुजा की, जय माता जी की, जय गोपी नाथ जी की, जय एक लिंग जी की इत्यादि। इन अभिवादनो से क्षत्रियो का इष्ट प्रबल होता था। आज इनको त्यागने से हमारा इष्ट हमसे रुष्ट है, यही हमारे विनाश का प्रमुख कारण है।
आयुवान सिंह हुडील स्मृति संस्थान के कार्य कर्ता इस अभिवादन का प्रयोग नहीं करते। श्रधये देवी सिंह जी महार, व सवाई सिंह जी धमोरा इस अभिवादन का प्रबल विरोध करते है। आज हमारा किताबी ज्ञान इतना सतही है कि हम विजातीय तत्वों के प्रभाव में आ कर आपने बुजुर्गो की बात को दरकिनार कर देते है। जबकि हमारी जड़े बहुत मजबूत है पर हम स्वयं उन्हें काट रहे है।