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Jan 25, 2013

दलित उत्थान के पोषक रहे है राजपूत.

जय चार भुजा की सा,
राजपूत जाति के गौरवशाली अतीत पर प्रत्येक राजपूत को गर्व होना चाहिये, जैसा की मुझे भी है पर दुर्भाग्यवश हम हमारी मूल संस्कृति में अनेक विकृतियों का समावेश कर उसे बिगाड़ रहे है. भारत व राजपूत विरोधी कुछ षडयंत्रकारी इतिहासकारों द्वारा रचे गए षडयन्त्रो में फंस कर हम भी ऐसे भटके है कि हमें सही व गलत का भी ज्ञान नहीं रहा है पर इसका सारा दोष हम दूसरो पर ही नहीं मंढ सकते क्योंकि कमी हम में भी है, जो हम हर किसी के पिछलग्गू बन कर अपनी मौलिकता गवां रहे है.हमने अद्ययन करना तो बिलकुल त्याग रखा है,वरना इतनी भयानक स्थितियां उत्तपन्न नहीं होती. संघर्ष करने की क्षमता और विचार अध्ययन और मनन से ही पैदा होते है.आज धीरे-धीरे राजपूत अपने मूल साहित्य व संस्कृति से कोसों दूर हो रहा है. हमने अपने चारो और "रोयल्टी" का एक ऐसा बनावटी आवरण तैयार कर लिया है कि प्रजातंत्र में आम जन हमसे कटा-कटा सा रहने लगा है|

इसी का राजनीतिक दुष्परिणाम हमें भुगतना पड रहा है. मेरा दृढ विश्वास है कि जिस भी किसी राजपूत ने एक मात्र यदि राजपूत समाज की गीता श्री आयुवान सिंह हुडील द्वारा लिखी "राजपूत और भविष्य" को भी पढ़ा हो, तो वह आपके क्षत्रिय संस्कार,विचार व सभ्यता से विमुख नहीं हो सकता. ज्ञात रहे की हम भ्रम वश जिस बनावटी राजपूती गौरव की नक़ल कर रहे है,वह हमारी संस्कृति नहीं बल्कि राजाओं और जागीरदारों द्वारा अंग्रेजो की दासता में अपनाई गयी गलत चीजे है. आज से ५-७ साल पहले तक जय माता जी की, जय गोपीनाथ जी की, जय एक लिंग जी की कर अपने ईष्ट को याद करने वाला आम राजपूत आज कल दासता का परिचायक "खम्मा घणी" करने लगा है, यह संबोधन हमारे पूर्वज कभी नहीं किया करते थे.अंग्रेजो द्वारा पोलो खेलते समय पहने जाने वाली पतलून "बिर्जेश" व पोलो जैसे खेल कब से हमारी सभ्यता का अंग बन गए ? आश्चर्य जनक है !

हमारे पूर्वज तो जनता के दास हुवा करते थे जब से हम सिहं बने है,तब से निरंतर पतन की और अग्रसर है.अज्ञानी राजपूतों को पता होना चाहिए कि श्री राम ने शबरी के जूठे बैर क्यों खाए थे ? व बन्दर भालुओ की तरह जीवन व्यतीत करने वाले दलितों को क्यों साथ लिया था?, गौत्तम बुद्ध,महावीर स्वामी,बाबा रामदेव,जम्भो जी आदी ने दलितों को गले लगा कर ही समाज में क्षत्रियो की स्वकारीता को स्थापित किया था. वी. पी. सिंह.अर्जुन सिंह ने अपने पूर्वजो की महान परंपरा को ही आगे बढाया है और हमें उनपर गर्व होना चाहिये. प्रातः स्मरणीय महाराणा प्रताप ने भी भीलो व गरासियो को साथ लिया था,यहाँ तक की मेवाड़ के राज चिन्ह में भी भीलो को स्थान दिया गया था.अतः स्पष्ट है की राजपूत ने सर्व समाज को साथ लेकर ही शासन किया था|

दलित उत्थान की बड़ी-बड़ी बात करने वालो को पता होना चाहिये कि राजपूतों से बढकर किसी कौम ने दलित उत्थान के सामूहिक प्रयास किये हो तो बताये.अंत में विनम्र निवेदन है की महान राजपूत इतिहास,सभ्यता और संस्कृति का मुझे भी गर्व है पर जिस विकृत संस्कृति के पीछे हम भाग रहे है,वह चिंताजनक है.मध्य काल के पश्चात् जिन राजाओ व जागीरदारों के अदुर्दर्शिता पूर्ण निर्णयों व कर्मो का परीणाम आम राजपूत भूगत रहा है वह जरूर आज चर्चा का विषय होना चाहिये |

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