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Dec 17, 2012

मूल्यांकन के मापदण्ड ............



व्यक्ति का सही मूल्यांकन कर पाना बहुत कठिन है ! अक्सर उपरी दिखावे के जाल में फंसकर हम गलत दिशा पकड़ लेते है और व्यक्ति की वास्तविकता तक नहीं पहुँच पाते ! वेश भूषा, खानपान आदि से भले लगने वाले लोग फरेबी और क्रूर निकल सकते है, तो दिखने में बुरे लगने वाले लोगों में भी पवित्रता के दर्शन हो जाते है ! अक्सर लोग आर्थिक पक्ष की सबलता को देख कर मान एवं सम्मान प्रदर्शित करते है, जबकि अर्थ अपने आपमे कोई सम्मान देने योग्य वस्तु ही नहीं है ! आवश्यकता से अधिक अर्थ का होना दुर्गुणों के मार्ग खोलने की प्रबल सम्भावनाये अपने आप में समाहित किये हुए होता है ! साधारण बोल चाल के शिष्ठाचार से किसी के जीवन मूल्यों को पहचानना भी अंधेरों में भटकने जैसा ही है ! पवित्रता हो तो कडवी बात भी मधुरता प्रदान करती है और उपरी शिष्ठाचार के निचे इर्ष्या और डाह की अग्नि छुप कर बेठी हो तो वह शिष्ठाचार का पर्दा वह गर्मी रोकने में असक्षम होगा ! बड़ी बड़ी राशियाँ लोग चंदे एवं दान में दे देते है, जितनी बड़ी रकम होती है लोग उसे उतना ही बड़ा दानी बना देते है, लेकिन वह दान जो बदले में सम्मान चाहता हो, किसी भवन पर अपना नाम लिखवाना चाहता हो अथवा प्रशस्ति पत्र की चाह रखता हो, वह तो दान की श्रेणी में ही नहीं आता ! वह तो मात्र सौदा ही हो सकता है ! नौकरी में घूसखोरी नहीं करने वाले को हम इमानदार कहते है, यह उसकी विशेषता अवश्य है की वह गलत तरीकों से धनार्जन नहीं कर रहा है ! परन्तु क्या ईमानदारी का क्षेत्र यही तक सिमित हो गया है ! वयव्हार में कितनी पवित्रता है, कितनी निर्मलता है इसी से सच्चा मूल्यांकन हो सकता है ! ईमानदारी को आर्थिक पहलु पर ही क्यों लटकाकर छोड़ दिया जाये ! ईमानदारी हमारे जीवन के सिद्धांतो के प्रति क्यों नहीं ! इमानदारी पूर्वक हम हमारे उत्तरदायित्वों का निर्वहन क्यों नहीं करे !

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