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Dec 16, 2011

हमारी भूलें : जीवन मे जटिलता को अपना लेना

भगवान ने सृष्टि की रचना बहुत सरल रूप से की है| इसकी हर चीज सहज रूप से पैदा होती है, विकसित होती है व विनाश को प्राप्त होती है|उसमे कहीं भी जटिलता की कोई आवश्यकता का अनुभव नहीं प्राप्त होता, लेकिन व्यक्ति ने अपने आप को दूसरे लोगों के सामने विशिष्ट व ज्ञानवान साबित करने के लिए जीवन में इतनी जटिलताएं उत्पन्न करली है है कि अब उनसे निकलना व स्वतंत्र होना कठिन हो गया है|

समाज कल्याण की बात तो करते है, लेकिन समाज जिन जटिलताओं में उलझा हुआ है, उनसे न तो स्वयं बाहर निकलने का सहारा बटोर पाते है और उन दूसरे लोगों को जो बाहर निकलना चाहते है, थोड़ी मदद देने को तैयार है| यदि अवस्था यही रही तो सामाजिक संगठनों की ओर लोग आँख उठाकर देखना भी पसंद नहीं करेंगे|

एक तरफ हम सामजिक विकास के साथ साथ व्यक्तिगत विकास व उद्दर्वगामी साधना की बात करते है, दूसरी ओर टीका,शराब,वैभव का प्रदर्शन आदि महानतम सामाजिक बुराइयों से अपने आपको बचा लेने का साहस तक नहीं जुटा पाते| क्योंकि इनका परित्याग करने से हमारी बुरी आदतों व गौरखनाथ जैसे महान संत क्या कहते है, उनपर भी हम विचार करने को तैयार हो तो हमें हमारी बुरी आदतों से मुक्त होना पड़ेगा|
अवधू मान भषन्त दया धर्म का नास|
मद पीवतं तहां प्राण निरास|
भांगी भखंत ज्ञानं ध्यानं षोवतं|
जम दरबारी ते प्राणी रोवतं|
गोरखनाथ


मांस भक्षण करने से दया व धर्म का विनाश होता है| मदिरा पीने से प्राण शक्ति पर आघात लगता है, वह अंत समय में रोता है| लोगों के कल्याण की अभिलाषा रखने वाले संत इससे अधिक स्पष्ट ओर क्या कह सकते है? फिर भी यदि हम सुनने को तैयार नहीं हों व समाज सेवा की बातें करते रहे तो हमारी कथनी वृथा प्रवचना ही साबित होगी|

सत्य,धर्म का आधार है, चाहे क्षात्रधर्म हो या संसार का अन्य धर्म हो| बिना उसका आश्रय लिए कोई भी अपने धर्म को प्राप्त नहीं कर सकता| यदि आज कोई व्यक्ति सत्य पर आधारित हो जाय तो क्या समज उसको जीवित रहने देगा| विवाह शादियों के बड़े बड़े आडम्बर, बिकाऊ पुत्र के लिए टीके की थैलियाँ व अन्य सैकड़ों नहीं हजारों ऐसे रिवाज है, जिनको ईमानदारी से जीवनयापन कर सत्या-चरित हो कर कोई भी व्यक्ति पूरा नहीं कर सकता|

इस प्रकार हम देख रहे है कि जहाँ समाज को व्यक्ति का रक्षक होना चाहिए, वहीँ आज समाज व्यक्ति का भक्षक बन गया है| व्यक्ति का परिवार व्यक्ति के सगे,सम्बन्धी,व्यक्ति के भाई बंधू, उस व्यक्ति को खा जाने को तैयार हो जाते है, जो इमानदारी से जीवन यापन करना चाहता है| इन्हीं कारणों से समाज पहले खंडित हुआ है| जिनकी हम आज बात नहीं करना चाहते कि हमारे काले कारनामों को देखें तो मुसलमानों की अनेक खांपें जैसे पीरजादे,कायमखानी, लुहार, नीलगर, आदि तथा हिंदुओं की बहुत सारी जातियां जैसे गुजर,दरोगे,जाटों की कई खांपें, राणा,बड़वा,कलाल आदि राजपूतों से बनी है|

ये लोग समाज से पृथक क्यों कर दिए गए या पृथक हुए ? क्योंकि समाज ने अपने जीवन का जितना आडंबरपूर्ण बना रखा था, उसकी पूर्ति करने के लिए आर्थिक साधन इनके पास नहीं रहे, यदि हम इन आडम्बरों के आधार पर व्यक्ति को प्रतिष्ठा देते रहे होते तो वह दिन दूर नहीं, जब समाज का निचला वर्ग अपना सम्बन्ध विच्छेद कर लेगा|

हम जिस लोभ व लालच में पड़कर अधिक धनवान लोगों से सामाजिक बंधन बनाकर गरीबों को ठुकरा रहे है, अमीर लोग लोग जिन्होंने धन को ही अपना लक्ष्य समझा है, कभी भी विश्वनीय नहीं रहे है| जब इन लोगों के पास दौलत कुछ ओर बढ़ जायेगी तो ये लोग स्वत: ही तुम्हारे समाज को छोड़कर व्यवसायी वर्ग के साथ चले जायेंगे| इतिहास में महावीर के अनुयायी इसके प्रमाण है| ये समाज के धनवान लोग महावीर के अनुयायी लोगों के साथ जितने जल्दी चलें जाए, उतना ही समाज का कल्याण है|
इस प्रकार हमने देखा कि समाज का अल्प संख्यक धनीवर्ग पैसे के लोभ में माध्यम वर्ग को प्रभावित कर गरीब वर्ग को पहले समाज से पृथक कर देगा व बाद में स्वयं ही पृथक हो जायेगा| इस भयावह घटना की ओर यदि समाज सेवक के नाम पर काम करने वाले लोग घ्यान नहीं देंगे तो न समाज बचेगा ओर न ये सेवक| ऐसी समाज में अनेक जातियां है,जिन्होंने समय पर अपने आप को सुधारने की चेष्टा नहीं की और वे हमेशा के लिए समाप्त हो गई| ऐसा नहीं है कि हमने सानाजिक क्षेत्र में ही जीवन को जटिल बनाया है,हम धार्मिक क्षेत्र में भी उसी प्रकार की जटिलताओं में फंसे हुए है,जिससे हमको वास्तविकता को समझने में बहुत कठिनाई का सामना करना पड़ता है|जैसा कि पहले कहा जा चूका है,धर्म सरलता का ही दूसरा नाम है| यदि व्यक्ति को भगवान के अस्तित्व में विशवास है तो उसे किसी आडम्बर की आवश्यकता नहीं है| वह स्वयं सात्विक रूप से भगवान का भजन करता हुआ,अपने जीवन को इतना सरल व साधारण बनाले कि जिन लोगों के बीच में वह रह रहा है,उनको किसी प्रकार की असाधारण गतिविधि का पता ही नहीं चले| लेकिन हम ऐसा करना नहीं चाहते,क्योंकि हमको भजन नहीं करना है| हमको मात्र भक्ति का प्रदर्शन करना है|तो फिर मंदिर चाहिए,मठ चाहिए,पंडे पुजारी चाहिए,तीर्थयात्राएं चाहिए व दान पुण्य चाहिए| अगर यह सब नहीं हो तो समाज का गरीब वर्ग हमसे पृथक कैसे हो सकता है| व यह सब वही कर सकता है, इसलिए वह पापी है और हम पाप से कमाए धन से यह सब कर रहे है| इसलिए धर्मात्मा है| अगर समाज के जीवन में ये जटिलताये इसी प्रकार से ही कायम रही, और हमने इस पाखंड का परित्याग कर सहज व सरल जीवन को नहीं अपनाया तो समाज कभी जीवित नहीं रह सकता| सामज के जीवित रहने की आवश्यक शर्त है, जीवन के प्रत्येक अंग से जटिलताएं व आडम्बरों को निकाल फैंकना| सात्विक सरल व स्वाभाविक जीवन को व्यतीत करना, आडंबबरियों का तिरस्कार करना, व गरीबों का सत्कार करना|

आडम्बर जीवन की वास्तविकता को भुला ही नहीं देता, उसे ठुकराता है| लोग इस परिस्थिति को अधिक समय तक देख सकेंगे व बर्दास्त कर सकेंगे, ऐसे कल्पना हमें नहीं करनी चाहिए| पहले लोग कल्पनाओं पर जीवित रहने के अभ्यस्त थे| तब परलोक की कल्पनाओं में लोग उलझकर धार्मिक व सामाजिक आडम्बरों को सहन कर लेते थे| लेकिन अब प्रत्यक्ष का युग है, विज्ञान का युग है व्यक्ति विश्वासों पर नहीं जीना चाहता| औरों के जीवन में क्या होगा, क्या मिलेगा| इससे सरोकार नहीं| आज के व्यक्ति को प्रत्येक्ष चाहिए, जो कुछ है उसे आज देखना चाहता है| यदि समाज व्यक्ति को सुख नहीं दे सकता, सम्मान नहीं दे सकता, आध्यात्मिक मार्ग नहीं बतला सकता, ईश्वर से साक्षात्कार नहीं करा सकता तो वह अगले जीवन तक इंतजार नहीं करेगा| उसे जो आज देगा, उसके साथ वह चला जायेगा|

ठाकुर रविंद्रनाथ टेगौर के दादा अपने जमाने के बहुत धार्मिक व्यक्ति गिने जाते थे| उनके मकान के पास से एक नदी बहती थी| सर्दी के दिन, मध्यरात्रि का समय, एक युवक नदी में कूदा, वह भीगे कपड़ों से उनके सामने आकार पूछने लगा, क्या आपने भगवान को देखा है ? बहुत ही अजीब सवाल था| वे कुछ सोचने लगे| इतने में युवक पीछे मुड़ा और नदी में फिर कूद गया| यह युवक ओर कोई नहीं, स्वामी विवेकानंद थे| जिसने देखा है, उसके लिए सोचने का क्या कारण हो सकता है| यही सवाल स्वामी विवेकानंद ने रामकृष्ण परमहंस से किया और उनका उत्तर था, हाँ देखा है, वह अभी दिखा सकता हूँ|

आज का समाज राम-कृष्ण व विवेकानंद को प्राप्त करना चाहता है| वह आज में जीवित रहने को तैयार है| कल की व्यर्थ कल्पना ने फंसे नहीं रहना चाहता| जो संगठन समाज का कल की व्यर्थ कल्पनाओं में दीर्घ सूत्री योजनाओं के नाम पर उलझाए रखना चाहते है, समाज उनका परित्याग कर देगा| जो आज की बात करेगा चाहे वह बात कितनी ही छोटी क्यों न हो, समाज उसका साथ देगा, क्योंकि उसके द्वारा कुछ तो प्राप्त किया जा सकता है|

वैज्ञानिक युग का व्यक्ति व्यर्थ की कल्पना के आधार पर जीने को तैयार नहीं है| इसलिए जो धर्म आडम्बरों में फंसे रहेंगे, उनका इस जमाने में अवश्य नाश होगा| तथा जो लोग अपने सामाजिक व धार्मिक जीवन को बहुत सरल व सीधा बना लेंगे, उनका विकास अवश्य होगा|

परम्पराओं व संस्कृति के नाम पर आज तक हम आडम्बरों व जटिलताओं से बंधे है व अपने जीवन को उलझा दिया है| अब भी समय है कि हम समझें इन आडम्बरों व जटिलताओं का परित्याग करें व् उत्साह पूर्वक अनुसरण करें| कल्याण का यही एक मात्र मार्ग ही हो सकता है|

लेखक : श्री देवीसिंह,महार

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