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Dec 15, 2011

हमारी भूलें : मात्र भूलों को खोजते रहना

अपनी भूलों को खोजना, उनकी चर्चा, उनका प्रचार करना, यह आत्मनिंदा की परिभाषा में आता है व आत्म निंदा आर्यों का धर्म नहीं है| श्रेष्ठ लोग अपनी निंदा नहीं करते, क्योंकि आत्म निंदा करने से स्वयं का व समाज के दूसरे लोगों का मनोबल टूटता है, प्राण शक्ति पर आघात लगता है|

आत्मचिंतन व आत्म मनन श्रेष्ठ लोगों का धर्म है| अपने बारे में विचार किये बिना व अपने गुण दोषों के सम्यक ज्ञान के अभाव में कोई भी विचार के मार्ग पर अग्रसर नहीं हो सकता|

इसलिए ऐसे समाज, जो मात्र अपने दोषों का वर्णन करते है, प्रचार करते है व एक दूसरे को दोषी ठहराने में गौरव अनुभव करते है, वे विग्रह व विनाश के गर्त में पड़कर हमेशा के लिए नष्ट हो जाते है| लेकिन ऐसे लोग व समाज को अपनी त्रुटियों व अपनी भूलों को खोजते है, उनको अपने व्यक्तिगत व समाज के जीवन से जीवन से निकालने की चेष्टा करते है, वे अपने खोये हुए गौरव को पुन: प्राप्त कर यश के भागी होते है|

अब जो लोग अपने व समाज के बारे में चिंतनशील है वे स्वयं अपने व समाज के आज के चरित्र को देखें उसके बाद उनकी अंतरात्मा स्वयं जबाब दे देगी कि उनका व समाज का क्या भविष्य है ? भविष्य वर्तमान में छिपा है, भविष्य को बनाना है तो वर्तमान को उज्जवल बनाना ही होगा| इसके अलावा अन्य कोई उपचार नहीं है|

लेखक : श्री देवीसिंह महार

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