-->

Jul 1, 2011

हमारी भूले : भविष्य के ज्ञान का अभाव

आज हम समाज को नेतृत्व देने की बात कहते है व ऐसी ही अभिलाषा अपने अन्दर संजोये हुए है , किन्तु यह नही जाते की नेतृत्व देने की क्षमता के लिए जो सबसे पहली आवश्यकता है वह है " भविष्य का ज्ञान " | नेता " क्रान्तदर्शी " होता है | अर्थात आर पार देखने वाला , कालचक्र किस और व किस गति से बढ़ रहा है , इसके सम्बन्ध में नेतृत्व करने वाले व्यक्तियों में स्पष्ट धारणा होनी चाहिए | हम पाच हज़ार वर्ष से पांच सौ वर्ष पीछे तक की बातें कहते है , सुनते है , व उन्ही घिसीपिटी परिपाटियों पर चलना चाहते है | यदि हमे भविष्य का बोध होता तो हमारा मार्ग व हमारा आचरण हमारे पतन काल के ढर्रे से पूरी तरह बदल गया होता | अपने आप को बदलने के लिए व भविष्य को देखने के लिए यह आवश्यक है कि हम हमारी रूढिगत बुराइयों का परित्याग करे व नए समय के साथ जो नहीं ज्योति व नया विचार आ रहा है , उसको ग्रहण करने कि क्षमता उपार्जित करे |

हम कहते कि हमे बैठकर विचार करना चाहिए कि हमारा कार्यक्रम क्या हो ?हम हमारे मतभेदों को किस प्रकार भुला सकते है या कम कर सकते है | लेकिन हम नहीं जानते कि अंधा अंधे का मार्ग दर्शन नहीं कर सकता | जिनको भविष्य नहीं दीखता , वे बहुत सारे लोग मिलकर यदि भविष्य को बनाने कि योजना बनावें तो वह अँधेरे में लट्ठ मारने के सामान होगा |

ऐसा नहीं है कि हम भविष्य को देख नहीं सकते | लेकिन वास्तविकता यह है कि भविष्य को देखने कि हमारे में चाह नहीं है | क्योंकि हमे भय लगता है कि भविष्य के चक्कर में कहीं वर्तमान न बिगड़ जाए | क्योंकि हम नहीं जानते कि जिसका भविष्य बिगड़ा हुआ है उसका वर्तमान कभी सफल नहीं हो सकता | इस प्रकार हम समाज को संघठित कर उसका मार्ग दर्शन करने व समाज का कल्याण करने कि मृगतृष्णा में अपने आप को छलते जा रहे है | ये छलना जैसे जैसे खडित होती जायेगी वैसे वैसे , समाज में और अधिक निराशा व्याप्त होगी |

पहले भी समाज में बड़े बड़े सामाजिक संघठन बने ' लेकिन किसी ने भी तपस्या का आश्रय ले , भविष्य कि दृष्टि प्राप्त करने कि चेष्टा नहीं कि | परिणाम स्वरूप वे संघठन धराशाही हुए , समाप्त हुए व समाज के लिए छोड़े गए केवल निराशा |

अगर चाह हो तो व्यक्ति मार्ग दर्शकों कि खोज भी कर सकता है , किन्तु हमने ऐसा भी नहीं किया | ऐसा नहीं है कि हमारे समाज में मार्ग दर्शक नहीं हुए या नहीं है , लेकिन हमने अपने अहंकार , पूर्वाग्रह व अपनी रुढ़िवादीता के कारण कभी उसका मार्ग दर्शन प्राप्त करने या उनके वचनों पर चिंतन , मनन कर अपने आपको बदलने पर ध्यान नही दिया | परिणाम जो होना चाहिए था , वाही हुआ | अब भी समय है , जब स्थिति को बदला जा सकता है , व भविष्य कि वास्तविकता को समझकर तदनुसार कार्यक्रम तैयार किये जा सकते है |
लेखक : श्री देवीसिंह महार
क्षत्रिय चिन्तक


श्री देवीसिंह जी महार एक क्षत्रिय चिन्तक व संगठनकर्ता है आप पूर्व में पुलिस अधिकारी रह चुकें है क्षत्रियों के पतन के कारणों पर आपने गहन चिंतन किया है यहाँ प्रस्तुत है आपके द्वारा किया गया आत्म-चिंतन व क्षत्रियों द्वारा की गयी उन भूलों का जिक्र जिनके चलते क्षत्रियों का पतन हुआ | इस चिंतन और उन भूलों के बारे में क्यों चर्चा की जाय इसका उत्तर भी आपके द्वारा लिखी गयी इस श्रंखला में ही आपको मिलेगा |

Share this:

Related Posts
Disqus Comments