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Apr 20, 2010

शेखावाटी


आपने नरेश सिंह जी का ब्लॉग मेरी शेखावाटी जरुर देखा होगा, मेरे भी कई लेखों में शेखावाटी नाम का जिक्र भी कभी पढ़ा होगा | और राजस्थान के संपर्क नहीं आये लोगों में इस नाम के प्रति जिज्ञसा जरुर हुई होगी कि आखिर ये शेखावाटी है क्या ?
तो आइए आज शेखावाटी के परिचय और इसके इतिहास पर कुछ चर्चा करली जाये |
राजस्थान के वर्तमान सीकर और झुंझुनू जिले शेखावाटी के नाम से जाने जाते है इस क्षेत्र पर आजादी से पहले शेखावत क्षत्रियों का शासन होने के कारण इस क्षेत्र का नाम शेखावाटी प्रचलन में आया |
देशी राज्यों के भारतीय संघ में विलय से पूर्व मनोहरपुर-शाहपुरा,खंडेला,सीकर,खेतडी,बिसाऊ,सुरजगढ,नवलगढ़,मंडावा, मुकन्दगढ़,दांता,खुड,खाचरियाबास,अलसीसर,मलसीसर,लछमनगढ़ आदि बड़े-बड़े प्रभावशाली संस्थान शेखा जी के वंशधरों के अधिकार में थे | आज शेखावाटी क्षेत्र पर्यटन और शिक्षा के क्षेत्र में विश्व मानचित्र में तेजी से उभर रहा है यहाँ पिलानी और लछमन गढ़ के भारत प्रसिद्ध शिक्षा केंद्र है वही नवलगढ़,फतेहपुर,अलसीसर,मलसीसर,लछमनगढ़ , मंडावा आदि जगहों पर बनी प्राचीन बड़ी-बड़ी हवेलियाँ अपनी विशालता और भित्ति चित्रकारी के लिए विश्व प्रसिद्ध है जिन्हें देखने देशी-विदेशी पर्यटकों का ताँता लगा रहता है | पहाडों में सुरम्य जगहों बने जीणमाता मंदिर,शाकम्बरीदेवी का मन्दिर,लोहार्ल्गल के अलावा खाटू में बाबा श्याम का (बर्बरीक) का मन्दिर,सालासर में हनुमान जी का मन्दिरआदि स्थान धार्मिक आस्था के ऐसे केंद्र है जहाँ दूर-दूर से श्रद्धालु दर्शनार्थ आते है | इस शेखावाटी प्रदेश ने जहाँ देश के लिए अपने प्राणों को बलिदान करने वाले देशप्रेमी दिए वहीँ उद्योगों व व्यापार को बढ़ाने वाले सैकडो उद्योगपति व व्यापारी दिए जिन्होंने अपने उद्योगों से लाखों लोगों को रोजगार देकर देश की अर्थव्यवस्था में अपना योगदान दिया | भारतीय सेना को सबसे ज्यादा सैनिक देने वाला झुंझुनू जिला शेखावाटी का ही भाग है | शेखावाटी क्षेत्र व उसके इतिहास के बारे में प्रस्तुत है कुछ देसी-विदेशी विद्वानों व इतिहासकारों द्वारा दी गई जानकारी --

राजस्थान का मरुभूमि वाला पुर्वोतरी एवं पश्चिमोतरी विशाल भूभाग वैदिक सभ्यता के उदय का उषा काल माना जाता है | हजारों वर्ष पूर्व भू-गर्भ में विलुप्त वैदिक नदी सरस्वती यहीं पर प्रवाह मान थी ,जिसके तटों पर तपस्यालीन आर्य ऋषियों ने वेदों के सूत्रों की सरंचना की थी | सिन्धुघाटी सभ्यता के अवशेषों एवं विभिन्न संस्कृतियों के परस्पर मिलन,विकास उत्थान और पतन की रोचक एवं गौरव गाथाओं को अपने विशाल आँचल में छिपाए यह मरुभूमि भारतीय इतिहास के गौरवपूर्ण अध्याय की श्र्ष्ठा और द्रष्टा रही है | जनपदीय गणराज्यों की जन्म स्थली और क्रीडा स्थली बने रहने का श्रेय इसी मरुभूमि को रहा है | इस मरुभूमि ने ऐसे विशिष्ठ पुरुषों को जन्म दिया है, जिन्होंने अपने कार्यकलापों से भारतीय इतिहास को प्रभावित किया है |
इसी मरुभूमि का एक भाग प्रमुख भाग शेखावाटी प्रदेश है जो विशालकाय मरुस्थल के पुर्वोतरी अंचल में फैला हुआ है | इसका शेखावाटी नाम विगतकालीन पॉँच शताब्दियों में इस भू-भाग पर शासन करने वाले शेखावत क्षत्रियों के नाम पर प्रसिद्ध हुआ है | उससे से पूर्व अनेक प्रांतीय नामो से इस प्रदेश की प्रसिद्दि रही है | इसी भांति अनेक शासक कुलों ने समय-समय पर यहाँ राज्य किया है |
सुरजन सिंह शेखावत
(प्रसिद्ध इतिहासकार )


वीर भूमि शेखावाटी प्रदेश की स्थापना महाराव शेखा जी एवं उनके वंशजों के बल,विक्रम,शोर्य और राज्याधिकार प्राप्त करने की अद्वितीय प्रतिभा का प्रतिफल है यहाँ के दानी-मानी लक्ष्मी पुत्रों,सरस्वती के अमर साधकों तथा शक्ति के त्यागी-बलिदानी सिंह सपूतों की अनोखी गौरवमयी गाथाओं ने इसकी अलग पहचान बनाई और स्थाई रूप देने में अपनी त्याग व तपस्या की भावना को गतिशील बनाये रखा | यहाँ के प्रबल पराक्रमी,सबल साहसी,आन-बान और मर्यादा के सजग प्रहरी शूरवीरों के रक्त-बीज से शेखावाटी के रूप में यह वट वृक्ष अपनी अनेक शाखाओं प्रशाखाओं में लहराता,झूमता और प्रस्फुटित होता आज भी अपनी अमर गाथाओं को कह रहा है | शेखावाटी नाम लेने मात्र से ही आज भी शोर्य का संचार होता है,दान की दुन्दुभी कानों में गूंजती है और शिक्षा,साहित्य,संस्कृति तथा कला का भाव उर्मियाँ उद्वेलित होने लगती है | यहाँ भित्तिचित्रों ने तो शेखावाटी के नाम को सारे संसार में दूर-दूर तक उजागर किया है | यह धरा धन्य है | ऋषियों की तपोभूमि रही है तो कृषकों की कर्मभूमि | यह धर्मधरा राजस्थान की एक पुण्य स्थली है |
ऐतिहासिक द्रष्टि से इसमें अमरसरवाटी,झुंझुनू वाटी,उदयपुर वाटी, खंडेला वाटी, नरहड़ वाटी,सिंघाना वाटी,सीकर वाटी,फतेहपुर वाटी, आदि कई भाग परिणित होते रहे है | इनका सामूहिक नाम ही शेखावाटी प्रसिद्ध हुआ | जब शेखावाटी का अपना अलग राजनैतिक अस्तित्व था तब उसकी सीमाए इस प्रकार थी -- उत्तर पश्चिम में भूतपूर्व बीकानेर राज्य,उत्तरपूर्व में लोहारू और झज्जर,दक्षिण पूर्व में तंवरावाटी और भूतपूर्व जयपुर राज्य तथा दक्षिण पश्चिम में भूतपूर्व जोधपुर राज्य | परन्तु इसकी भौगोलिक सीमाएं सीकर और झुंझुनू दो जिलों तक ही सिमित मानी जाती रही है | वर्तमान शासन व्यवस्था में भी इन दो जिलो को ही शेखावाटी माना गया है | देशी राज्यों के भारतीय संघ में विलय से पूर्व मनोहरपुर-शाहपुरा,खंडेला,सीकर,खेतडी,बिसाऊ,सुरजगढ,नवलगढ़,मंडावा, मुकन्दगढ़, दांता, खुड, खाचरियाबास,अलसीसर,मलसीसर,लछमनगढ़ आदि बड़े-बड़े प्रभावशाली संस्थान शेखा जी के वंशधरों के अधिकार में थे |
डा.उदयवीर शर्मा
शेखावत संघ ने,जो आमेर राजवंश से उदभूत है ,काल और परिस्थितियों के प्रभाव से अपने पैत्रिक राज्य आमेर के बराबर सम्मान और शक्ति संचय कर ली है |
यधपि इस संघ का न कोई लिखित कानून है और न इसका प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष कोई प्रधानाध्यक्ष है | किन्तु समान हित की भावना से प्रेरित यह संघ अपना अस्तित्व बनाये रखने में सदैव समर्थ रहा है | फिर भी यह नहीं मान लेना चाहिय कि इस संघ में कोई नीति-कर्म नहीं है | जब कभी एक छोटे से छोटे सामंत के स्वत्वधिकारों के हनन का प्रश्न उपस्थित हुआ तो छोटे-बड़े सभी शेखावत सामंत सरदारों ने उदयपुर नामक अपने प्रसिद्ध स्थान पर इक्कठे होकर स्वत्व-रक्षा का समाधान निकाला है |
( कर्नल जेम्स टोड )
जिस काल का हम वर्णन कर रहे है,शेखावाटी प्रदेश ठिकानों (छोटे उप राज्यों ) का एक समूह था,जिसके उत्तर पश्चिम में बीकानेर,उत्तर पूर्व में लोहारू और झज्जर ,दक्षिण पूर्व में जयपुर और पाटन तथा दक्षिण पश्चिम में जोधपुर राज्य था | थार्टन के अनुसार शेखावाटी का क्षेत्रफल ३८९० वर्ग मील है जो भारतीय जनगणना रिपोर्ट १९४१ के आंकडों के लगभग बराबर है भारतीय जनगणना रिपोर्ट १९४१ के अनुसार शेखावाटी का क्षेत्रफल ३५८० वर्ग मील है | कर्नल टोड ने शेखावाटी का क्षेत्रफल ५४०० वर्ग मील होने का अनुमान लगाया है जो अतिशयोक्तिपूर्ण एवं अविश्वसनीय है |
अपनी अन-उपजाऊ प्राकृतिक स्थिति के कारण शेखावाटी सदैव से योद्धाओं,साहसिकों और दुर्दांत डाकुओं की भूमि रही है | शेखावाटी जयपुर राज्य में सदैव तूफान का केंद्र बनी रही और समय-समय पर जयपुर के आंतरिक शासन में ब्रिटिश हस्तेक्षेप के लिए अवसर जुटाती रही |
(एच.सी.बत्रा, M.A. इतिहास )
जयपुर,मारवाड़ और मेवाड़ की भांति शेखावाटी राजनैतिक और भौगोलिक द्रष्टि से एक प्रथक प्रदेश है | शेखावाटी के चीफ लोग जयपुर राज्य की सहायक सैनिक जाति के है और वे नाम मात्र को जयपुर राज्य के अधीन है |
(हेमिल्टन का हिन्दुस्थान भाग -१ )
रसाले (घुड़सवार सेना ) की भर्ती के हेतु शेखावाटी के मुकाबले समस्त भारत में कोई दूसरा क्षेत्र नहीं है |
(कर्नल जे.सी.ब्रुक )


शेखावाटी के बारे में बाड़मेर के पूर्व सांसद स्व.श्री तन सिंह जी अपने बदलते द्रश्य नामक पुस्तक में लिखते है |
मैंने मोकल के पुत्र राव शेखा को देखा जिसके बल विक्रम से नए राज्य की नीव लग रही थी | साथ ही मैंने बीस सवारों के साथ रायसल दरबारी को देखा जिसने अकथनीय पराक्रम से शत्रु सेनापति का सर काट डाला और मंत्री देवीदास के इस कथन की सिद्दि प्राप्त की कि " पिता की सम्पति पर अधिकार करने की अपेक्षा अपने ही बल पराक्रम से सौभाग्य का उपार्जन मनुष्य का कर्तव्य है -यही जगदीश्वर का अनुग्रह है " उसी जगदीश्वर का अनुग्रह मैंने रायसल के पुत्र द्वारकादास पर देखा जिसके सिंह से युद्ध के लिए उद्दत होने पर लड़ने की अपेक्षा वही शेर उनके तलवे चाटने लगा | मैंने भोजराज के वंशज नव-विवाहित सुजान सिंह को खंडेला के मंदिर की रक्षा करते देखा | उसे पुरे यौवन के अधूरे अरमानो के साथ अकेले ही सैकडो यवनों को मसलते देखा | धरा धर्म की मांग पर प्राणोत्सर्ग के कर्तव्य का इतिहास में अमूल्य प्रष्ठ जुड़ते देखा | वे माताएं होगी जिन्होंने इस प्रकार के नव-रत्नों को जन्म दिया है | मैंने केसरी सिंह को देखा जिसने सैयद अब्दुल्ला द्वारा भेजी गई शाही सेना का मुकाबला करने के लिए समस्त शेखावाटी को एक सूत्र में बांध दिया और जब वह सूत्र टूटने लगा तो युद्ध से भागने की सलाह को अस्वीकार करते कहा था कि ऐसा कलंक मै अपने ऊपर कभी नहीं लगाना चाहता जिसे मेरी आने वाली पीढियां भी नहीं धो सकती | उसी केसरी सिंह को अंत में मेदिनी माता को अपने ही रक्त मांस व मिटटी से पिंडदान करते देखा | मैंने अनेक बार खंडेला को उठते गिरते लडखडाते और लड़ते देखा | शार्दुल सिंह शेखावत जैसे जीवट के खिलाडियों को देखा,खेल के मैदानों को देखा,खेलों को देखा और छोटी-छोटी बातों में जीवन की महानताओं को गोते लगाते देखा और मेरे मुंह से बरबस निकल पड़ा वाह शेखावाटी ! वाह !!






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